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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 11: महापुरुष का संक्षिप्त वर्णन  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  12.11.31 
कालो देश: क्रिया कर्ता करणं कार्यमागम: ।
द्रव्यं फलमिति ब्रह्मन् नवधोक्तोऽजया हरि: ॥ ३१ ॥
 
शब्दार्थ
काल:—काल; देश:—स्थान; क्रिया—उद्योग; कर्ता—करने वाला; करणम्—उपकरण; कार्यम्—अनुष्ठान; आगम:— शास्त्र; द्रव्यम्—साज-सामग्री; फलम्—फल; इति—इस प्रकार; ब्रह्मन्—हे ब्राह्मण शौनक; नवधा—नौ प्रकार की; उक्त:—वर्णित; अजया—माया के रूप में; हरि:—भगवान् हरि ।.
 
अनुवाद
 
 हे शौनक, माया का स्रोत होने से भगवान् हरि के अंश रूप सूर्य देव को नौ प्रकार से—काल, देश, क्रिया, कर्ता, उपकरण, अनुष्ठान, शास्त्र, पूजा की साज-सामग्री तथा प्राप्तव्य फल के अनुसार—वर्णित किया गया है।
 
 
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