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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 11: महापुरुष का संक्षिप्त वर्णन  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  12.11.4 
सूत उवाच
नमस्कृत्य गुरून् वक्ष्ये विभूतीर्वैष्णवीरपि ।
या: प्रोक्ता वेदतन्त्राभ्यामाचार्यै: पद्मजादिभि: ॥ ४ ॥
 
शब्दार्थ
सूत: उवाच—सूत गोस्वामी ने कहा; नमस्कृत्य—नमस्कार करके; गुरून्—गुरुओं को; वक्ष्ये—कहूँगा; विभूती:—ऐश्वर्य; वैष्णवी:—भगवान् विष्णु सम्बन्धी; अपि—निस्सन्देह; या:—जो; प्रोक्ता:—वर्णित होते हैं; वेद-तन्त्राभ्याम्—वेदों तथा तंत्रों द्वारा; आचार्यै:—अधिकारियों द्वारा; पद्मज-आदिभि:—ब्रह्मा इत्यादि द्वारा ।.
 
अनुवाद
 
 सूत गोस्वामी ने कहा : मैं अपने गुरुओं को नमस्कार करके कमल से उत्पन्न ब्रह्मा आदि महान् विद्वानों द्वारा वेदों तथा तंत्रों में दिये हुए भगवान् के ऐश्वर्यों का वर्णन तुमसे फिर से करूँगा।
 
 
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