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श्लोक 12.11.49  |
वालखिल्या: सहस्राणि षष्टिर्ब्रह्मर्षयोऽमला: ।
पुरतोऽभिमुखं यान्ति स्तुवन्ति स्तुतिभिर्विभुम् ॥ ४९ ॥ |
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शब्दार्थ |
वालखिल्या:—वालखिल्य; सहस्राणि—हजार; षष्टि:—साठ; ब्रह्म-ऋषय:—ब्रह्मर्षि; अमला:—शुद्ध; पुरत:—आगे- आगे; अभिमुखम्—रथ की ओर मुँह किये; यान्ति—जोतते हैं; स्तुवन्ति—स्तुति करते हैं; स्तुतिभि:—वैदिक स्तुतियों द्वारा; विभुम्—सर्वशक्तिमान प्रभु की ।. |
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अनुवाद |
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रथ की ओर मुँह किये साठ हजार वालखिल्य नामक ब्रह्मर्षि आगे-आगे चलते हैं और वैदिक मंत्रों द्वारा सर्वशक्तिमान सूर्य देव की स्तुति करते हैं। |
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