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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 11: महापुरुष का संक्षिप्त वर्णन  »  श्लोक 6-8
 
 
श्लोक  12.11.6-8 
एतद् वै पौरुषं रूपं भू: पादौ द्यौ: शिरो नभ: ।
नाभि: सूर्योऽक्षिणी नासे वायु: कर्णौ दिश: प्रभो: ॥ ६ ॥
प्रजापति: प्रजननमपानो मृत्युरीशितु: ।
तद्बाहवो लोकपाला मनश्चन्द्रो भ्रुवौ यम: ॥ ७ ॥
लज्जोत्तरोऽधरो लोभो दन्ता ज्योत्स्‍ना स्मयो भ्रम: ।
रोमाणि भूरुहा भूम्नो मेघा: पुरुषमूर्धजा: ॥ ८ ॥
 
शब्दार्थ
एतत्—यह; वै—निस्सन्देह; पौरुषम्—विराट पुरुष का; रूपम्—रूप; भू:—पृथ्वी; पादौ—उनके पाँव; द्यौ:—स्वर्ग; शिर:—उनका शिर; नभ:—आकाश; नाभि:—उनकी नाभि; सूर्य:—सूर्य; अक्षिणी—उनके दो नेत्र; नासे—उनके नथुने; वायु:—वायु; कर्णौ—उनके कान; दिश:—दिशाएँ; प्रभो:—भगवान् के; प्रजा-पति:—प्रजनन का देवता; प्रजननम्— उनका प्रजनन अंग; अपान:—उनकी गुदा; मृत्यु:—मृत्यु; ईशितु:—परम नियन्ता का; तत्-बाहव:—उनकी अनेक भुजाएँ; लोक-पाला:—विभिन्न लोकों के अधिष्ठाता; मन:—उनका मन; चन्द्र:—चन्द्रमा; भ्रुवौ—उनकी भौंहें; यम:—यमराज; लज्जा—लज्जा; उत्तर:—उनका ऊपरी होठ; अधर:—उनका निचला होठ; लोभ:—लालच; दन्ता:—उनके दाँत; ज्योत्स्ना—चाँदनी; स्मय:—उनकी मुसकान; भ्रम:—भ्रम; रोमाणि—उनके रोएँ; भू-रुहा:—वृक्ष; भूम्न:—सर्वशक्तिमान प्रभु के; मेघा:—बादल; पुरुष—विराट पुरुष के; मूर्ध-जा:—सिर के बाल ।.
 
अनुवाद
 
 यह भगवान् का विराट रूप है, जिसमें पृथ्वी उनके पाँव, आकाश उनकी नाभि, सूर्य उनकी आँखें, वायु उनके नथुने, प्रजापति उनके जननांग, मृत्यु उनकी गुदा तथा चन्द्रमा उनका मन है। स्वर्गलोक उनका शिर, दिशाएँ उनके कान तथा विभिन्न लोकपाल उनकी अनेक भुजाएँ हैं। यमराज उनकी भौंहे, लज्जा उनका निचला होठ, लालच उनका ऊपरी होठ, भ्रम उनकी मुसकान तथा चाँदनी उनके दाँत है, जबकि वृक्ष उन सर्वशक्तिमान पुरुष के शरीर के रोम हैं और बादल उनके शिर के बाल हैं।
 
तात्पर्य
 भौतिक जगत के विविध पक्ष, यथा पृथ्वी, सूर्य तथा वृक्ष भगवान् के विराट शरीर के विविध अंगों द्वारा पालित-पोषित हैं। इसलिए वे उनसे अभिन्न माने जाते हैं, जैसाकि इस श्लोक में वर्णन आया है। ये सभी ध्यान के निमित्त हैं।
 
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