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अध्याय 13: श्रीमद्भागवत की महिमा |
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संक्षेप विवरण: इस अन्तिम अध्याय में श्री सूत गोस्वामी ने प्रत्येक पुराण के विस्तार के साथ-साथ श्रीमद्भागवत की कथावस्तु, उसके उद्देश्य, उसके भेंट-रूप दिये जाने की विधि, ऐसी भेंट... |
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श्लोक 1: सूत गोस्वामी ने कहा : ब्रह्मा, वरुण, इन्द्र, रुद्र तथा मरुत्गण दिव्य स्तुतियों का उच्चारण करके तथा वेदों को उनके अंगों, पद-क्रमों तथा उपनिषदों समेत बाँच कर जिनकी स्तुति करते हैं, सामवेद के गायक जिनका सदैव गायन करते हैं, सिद्ध योगी अपने को समाधि में स्थिर करके और अपने को उनके भीतर लीन करके जिनका दर्शन अपने मन में करते हैं तथा जिनका पार किसी देवता या असुर द्वारा कभी भी नहीं पाया जा सकता—ऐसे भगवान् को मैं सादर नमस्कार करता हूँ। |
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श्लोक 2: जब भगवान् कूर्म (कछुवे) के रूप में प्रकट हुए तो उनकी पीठ भारी, घूमने वाले मन्दराचल पर स्थित नुकीले पत्थरों के द्वारा खरोंची गई जिसके कारण भगवान् उनींदे हो गये। इस सुप्तावस्था में भगवान् की श्वास से उत्पन्न वायुओं द्वारा आप सबों की रक्षा हो। उसी काल से, आज तक, समुद्री ज्वारभाटा पवित्र रूप में आ-जाकर भगवान् के श्वास-निश्वास का अनुकरण करता आ रहा है। |
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श्लोक 3: अब मुझसे सभी पुराणों की श्लोक संख्या सुनिये। तब इस भागवत पुराण के मूल विषय तथा उद्देश्य, इसे भेंट में देने की सही विधि, ऐसी भेंट देने का माहात्म्य और अन्त में इस ग्रंथ के सुनने तथा कीर्तन करने का माहात्म्य सुनिये। |
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श्लोक 4-9: ब्रह्म पुराण में दस हजार, पद्म पुराण में पचपन हजार, श्री विष्णु पुराण में तेईस हजार, शिव पुराण में चौबीस हजार तथा श्रीमद्भागवत में अठारह हजार श्लोक हैं। नारद पुराण में पच्चीस हजार हैं, मार्कण्डेय पुराण में नौ हजार, अग्नि पुराण में पन्द्रह हजार चार सौ, भविष्य पुराण में चौदह हजार पाँच सौ, ब्रह्मवैवर्त पुराण में अठारह हजार तथा लिंग पुराण में ग्यारह हजार श्लोक हैं। वराह पुराण में चौबीस हजार, स्कन्द पुराण में इक्यासी हजार एक सौ, वामन पुराण में दस हजार, कूर्म पुराण में सत्रह हजार, मत्स्य पुराण में चौदह हजार, गरुड़ पुराण में उन्नीस हजार तथा ब्रह्माण्ड पुराण में बारह हजार श्लोक हैं। इस तरह समस्त पुराणों की कुल श्लोक संख्या चार लाख है। पुन:, इनमें से अठारह हजार श्लोक अकेले श्रीमद्भागवत के हैं। |
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श्लोक 10: भगवान् ने सर्वप्रथम ब्रह्मा को सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत प्रकाशित की। उस समय ब्रह्मा, संसार से भयभीत होकर, भगवान् की नाभि से निकले कमल पर आसीन थे। |
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श्लोक 11-12: श्रीमद्भागवत आदि से अन्त तक ऐसी कथाओं से पूर्ण है, जो भौतिक जीवन से वैराग्य की ओर ले जाने वाली हैं। इसमें भगवान् हरि की दिव्य लीलाओं का अमृतमय विवरण भी है, जो सन्त भक्तों तथा देवताओं को आनन्द देने वाला है। यह भागवत समस्त वेदान्त दर्शन का सार है क्योंकि इसकी विषयवस्तु परब्रह्म है, जो आत्मा से अभिन्न होते हुए भी अद्वितीय परम सत्य है। इस ग्रंथ का लक्ष्य परब्रह्म की एकान्तिक भक्ति है। |
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श्लोक 13: यदि कोई व्यक्ति भाद्र मास की पूर्णमासी को सोने के सिंहासन पर रख कर श्रीमद्भागवत का दान उपहार के रूप में देता है, तो उसे परम दिव्य गन्तव्य प्राप्त होगा। |
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श्लोक 14: अन्य सारे पुराण तब तक सन्त भक्तों की सभा में चमकते हैं जब तक अमृत के महासागर श्रीमद्भागवत को नहीं सुना जाता। |
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श्लोक 15: श्रीमद्भागवत को समस्त वैदिक दर्शन का सार कहा जाता है। जिसे इसके अमृतमय रस से तुष्टि हुई है, वह कभी अन्य किसी ग्रंथ के प्रति आकृष्ट नहीं होगा। |
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श्लोक 16: जिस तह गंगा समुद्र की ओर बहने वाली समस्त नदियों में सबसे बड़ी है, भगवान् अच्युत देवों में सर्वोच्च हैं और भगवान् शम्भु (शिव) वैष्णवों में सबसे बड़े हैं, उसी तरह श्रीमद्भागवत समस्त पुराणों में सर्वोपरि है। |
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श्लोक 17: हे ब्राह्मणो, जिस तरह पवित्र स्थानों में काशी नगरी अद्वितीय है, उसी तरह समस्त पुराणों में श्रीमद्भागवत सर्वश्रेष्ठ है। |
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श्लोक 18: श्रीमद्भागवत निर्मल पुराण है। यह वैष्णवों को अत्यन्त प्रिय है क्योंकि यह परमहंसों के शुद्ध तथा सर्वोच्च ज्ञान का वर्णन करने वाला है। यह भागवत समस्त भौतिक कर्म से छूटने के साधन के साथ ही दिव्य ज्ञान, वैराग्य तथा भक्ति की विधियों को प्रकाशित करता है। जो कोई भी श्रीमद्भागवत को गम्भीरतापूर्वक समझने का प्रयास करता है, जो समुचित ढंग से श्रवण करता है और भक्तिपूर्वक कीर्तन करता है, वह पूर्ण मुक्त हो जाता है। |
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श्लोक 19: मैं उन शुद्ध तथा निष्कलुष परब्रह्म का ध्यान करता हूँ जो दुख तथा मृत्यु से रहित हैं और जिन्होंने प्रारम्भ में इस ज्ञान के अतुलनीय दीपक को ब्रह्मा से प्रकट किया। तत्पश्चात् ब्रह्मा ने इसे नारद मुनि से कहा, जिन्होंने इसे कृष्ण द्वैपायन व्यास से कह सुनाया। श्रील व्यास ने इस भागवत को मुनियों में सर्वोपरि, शुकदेव गोस्वामी, को बतलाया जिन्होंने कृपा करके इसे महाराज परीक्षित से कहा। |
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श्लोक 20: हम सर्वव्यापक साक्षी भगवान् वासुदेव को नमस्कार करते हैं जिन्होंने कृपा करके ब्रह्मा को यह विज्ञान तब बताया जब वे उत्सुकतापूर्वक मोक्ष चाह रहे थे। |
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श्लोक 21: मैं श्री शुकदेव गोस्वामी को सादर नमस्कार करता हूँ जो श्रेष्ठ योगी-मुनि हैं और परब्रह्म के साकार रूप हैं। उन्होंने संसार रूपी सर्प द्वारा काटे गये परीक्षित महाराज को बचाया। |
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श्लोक 22: हे ईशों के ईश, हे स्वामी, आप हमें जन्म-जन्मांतर तक अपने चरणकमलों की शुद्ध भक्ति का वर दें। |
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श्लोक 23: मैं उन भगवान् हरि को सादर नमस्कार करता हूँ जिनके पवित्र नामों का सामूहिक कीर्तन सारे पापों को नष्ट करता है और जिनको नमस्कार करने से सारे भौतिक कष्टों से छुटकारा मिल जाता है। |
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