भगवान् ने सर्वप्रथम ब्रह्मा को सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत प्रकाशित की। उस समय ब्रह्मा, संसार से भयभीत होकर, भगवान् की नाभि से निकले कमल पर आसीन थे।
तात्पर्य
भगवान् कृष्ण ने इस ब्रह्माण्ड की सृष्टि के पूर्व ब्रह्मा से श्रीमद्भागवत प्रकाशित की जैसाकि पूर्वम् शब्द से सूचित है। अपरंच, भागवत का प्रथम श्लोक कहता है—तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये—भगवान् कृष्ण ने ब्रह्मा के हृदय में पूर्णज्ञान का विस्तार किया। चूँकि बद्धात्माएँ केवल उन क्षणिक वस्तुओं का अनुभव कर सकते हैं, जो उत्पन्न, पालित तथा विनष्ट होती हैं, अत: वे आसानी से यह नहीं समझ पाते कि श्रीमद्भागवत नित्य दिव्य ग्रंथ है, जो परब्रह्म से अभिन्न है। मुण्डक उपानिषद् (१.१.१) में कहा गया है—
स ब्रह्मविद्यां सर्वविद्याप्रतिष्ठाम् अर्थवाय ज्येष्ठपुत्राय प्राह ॥
“समस्त देवताओं में सर्वप्रथम ब्रह्मा का जन्म हुआ। वे इस ब्रह्माण्ड के स्रष्टा तथा इसके रक्षक भी हैं। उन्होंने अपने ज्येष्ठ पुत्र अथर्वा को आत्म-विज्ञान की शिक्षा दी जो ज्ञान की अन्य सभी शाखाओं का आधार है।” किन्तु अपने उच्च पद के बावजूद भी ब्रह्मा तब भी भगवान् की मायाशक्ति के प्रभाव से भयभीत रहते हैं। इस तरह यह शक्ति प्राय: दुर्लंघ्य प्रतीत होती है। किन्तु श्री चैतन्य महाप्रभु इतने दयालु हैं कि उन्होंने पूर्वी तथा दक्षिणी भारत में अपने प्रचार-कार्य के दौरान, मुक्त रूप से कृष्णभावनामृत का वितरण हर एक को किया और उनसे निवेदन किया कि वे भगवद्गीता के शिक्षक बनें। चैतन्य महाप्रभु ने, जोकि साक्षात् कृष्ण हैं, लोगों को यह कह कर प्रोत्साहित किया, “मेरे आदेश से तुम भगवान् कृष्ण के सन्देश के शिक्षक बनो और इस देश की रक्षा करो। मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि माया की तरंगें तुम्हारी प्रगति को कभी रोक नहीं पायेंगी।” (चैतन्य-चरितामृत मध्य ७.१२८) यदि हम पापकर्मों को त्याग कर चैतन्य महाप्रभु के संकीर्तन आन्दोलन में निरन्तर लगे रहें, तो हमें अपने निजी जीवन में तथा अपने प्रचार के प्रयासों में भी सफलता प्राप्त होगी।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥