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श्लोक |
क्षेत्राणां चैव सर्वेषां यथा काशी ह्यनुत्तमा ।
तथा पुराणव्रातानां श्रीमद्भागवतं द्विजा: ॥ १७ ॥ |
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शब्दार्थ |
क्षेत्राणाम्—पवित्र स्थलों में; च—तथा; एव—निस्सन्देह; सर्वेषाम्—समस्त; यथा—जिस तरह; काशी—बनारस; हि— निस्सन्देह; अनुत्तमा—अद्वितीय; तथा—उसी तरह; पुराण-व्रातानाम्—समस्त पुराणों में; श्रीमत्-भागवतम्— श्रीमद्भागवत; द्विजा:—हे ब्राह्मणो ।. |
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अनुवाद |
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हे ब्राह्मणो, जिस तरह पवित्र स्थानों में काशी नगरी अद्वितीय है, उसी तरह समस्त पुराणों में श्रीमद्भागवत सर्वश्रेष्ठ है। |
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