पृष्ठे—उनकी पीठ पर; भ्राम्यत्—चक्कर लगाता; अमन्द—अत्यधिक भारी; मन्दर-गिरि—मन्दराचल के; ग्राव-अग्र— पत्थरों की नोंके; कण्डूयनात्—खुरचने से; निद्रालो:—उनींदा हो जाता है; कमठ-आकृते:—कछुवे के रूप का; भगवत:—भगवान् का; श्वास—श्वास से निकली; अनिला:—वायुएँ; पान्तु—रक्षा करें; व:—तुम सबों की; यत्— जिसका; संस्कार—उच्छिष्ट का; कला—रंचमात्र; अनुवर्तन-वशात्—पीछे चलने के फलस्वरूप; वेला-निभेन—जिससे वह प्रवाह के तुल्य है; अम्भसाम्—जल का; यात-आयातम्—आना-जाना; अतन्द्रितम्—अविरत; जल-निधे:—समुद्र का; न—नहीं; अद्य अपि—आज भी; विश्राम्यति—रुकता है ।.
अनुवाद
जब भगवान् कूर्म (कछुवे) के रूप में प्रकट हुए तो उनकी पीठ भारी, घूमने वाले मन्दराचल पर स्थित नुकीले पत्थरों के द्वारा खरोंची गई जिसके कारण भगवान् उनींदे हो गये। इस सुप्तावस्था में भगवान् की श्वास से उत्पन्न वायुओं द्वारा आप सबों की रक्षा हो। उसी काल से, आज तक, समुद्री ज्वारभाटा पवित्र रूप में आ-जाकर भगवान् के श्वास-निश्वास का अनुकरण करता आ रहा है।
तात्पर्य
कभी कभी फूँक मारने से खुजली की अनुभूति में कमी आती है। इसी प्रकार, श्रील भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर बतलाते हैं कि भगवान् के श्वास लेने से ज्ञानियों के मन की खुजलाहट घट सकती है। इसी तरह, इन्द्रियतृप्ति में लगे बद्धजीवों की भी इन्द्रियों की खुजलाहट घट सकती है। इस तरह भगवान् कूर्म—कूर्मावतार—की
वायुमयी श्वास का ध्यान करने से सभी प्रकार के बद्धजीव जगत के अभावों से छुटकारा पा सकते हैं और मुक्त आध्यात्मिक पद को प्राप्त हो सकते हैं। मनुष्य को चाहिए कि अपने हृदय के भीतर अनुकूल मन्द समीर की भाँति भगवान् कूर्म की लीलाओं को बहने दे। तब उसे निश्चित रूप से आध्यात्मिक शान्ति मिल सकेगी।
____________________________
All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥