भारताख्यानमखिलं चक्रे तदुपबृंहितम् ॥ लक्षणैकेन तत् प्रोक्तं वेदार्थपरिबृंहितम्। वाल्मीकिनापि यत् प्रोक्तं रामोपाख्यानमुत्तमम् ॥ ब्रह्मणाभिहितं तच्च शतकोटिप्रविस्तरात्। आहृत्य नारदेनैव वाल्मीकाय पुन: पुन: ॥ वाल्मीकिना च लोकेषु धर्मकामार्थसाधनम्। एवं सपादा: पञ्चैते लक्षास्तेषु प्रकीर्तिता: ॥ “अठारहों पुराणों की रचना करने के बाद सत्यवती पुत्र व्यासदेव ने सम्पूर्ण महाभारत की रचना की जिसमें समस्त पुराणों का सार है। इसमें एक लाख से भी अधिक श्लोक हैं और यह वेद के सभी भावों से पूर्ण है। इसके अतिरिक्त भगवान् रामचन्द्र की लीलाओं का वर्णन वाल्मीकि द्वारा किया गया है, जिसे मूलत: ब्रह्मा ने सौ करोड़ श्लोकों में कहा था। बाद में उस रामायण को नारद ने संक्षिप्त किया और उसे वाल्मीकि से कहा जिन्होंने इसे मानव जाति के समक्ष प्रस्तुत किया जिससे मनुष्य धर्म, काम तथा अर्थ की प्राप्ति कर सकें। इस तरह समस्त पुराणों तथा इतिहासों के श्लोकों की कुल ज्ञात संख्या ५,२५,००० है।” श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर इंगित करते हैं कि इस ग्रंथ के प्रथम स्कंध के तृतीय अध्याय में सूत गोस्वामी ने ईश्वर के अवतारों की सूची देने के बाद यह विशेष पद जोड़ दिया है—कृष्णस्तु भगवान् स्वयम् अर्थात् कृष्ण आदि भगवान् हैं। इसी तरह सारे पुराणों का उल्लेख करने के बाद सूत गोस्वामी ने श्रीमद्भागवत का पुन: उल्लेख यह बताने के लिए किया है कि यह समस्त पौराणिक ग्रंथों में प्रमुख है। |