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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 2: कलियुग के लक्षण  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  12.2.10 
शीतवातातपप्रावृड्‌‌हिमैरन्योन्यत: प्रजा: ।
क्षुत्तृड्भ्यां व्याधिभिश्चैव सन्तप्स्यन्ते च चिन्तया ॥ १० ॥
 
शब्दार्थ
शीत—जाड़ा; वात—हवा; आतप—तपन; प्रावृट्—मूसलाधार वर्षा; हिमै:—तथा बर्फ से; अन्योन्यत:—लडऩे-झगडऩे से; प्रजा:—नागरिक; क्षुत्—भूख; तृड्भ्याम्—तथा प्यास से; व्याधिभि:—रोगों से; —भी; एव—निस्सन्देह; सन्तप्स्यन्ते—उन्हें महान् कष्ट भोगना होगा; —तथा; चिन्तया—चिन्ता से ।.
 
अनुवाद
 
 जनता को शीत, वात, तपन, वर्षा तथा हिम से अत्यधिक कष्ट उठाना पड़ेगा। लोग आपसी झगड़ों, भूख, प्यास, रोग तथा अत्यधिक चिन्ता से भी पीडि़त होते रहेंगे।
 
 
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