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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 2: कलियुग के लक्षण  »  श्लोक 12-16
 
 
श्लोक  12.2.12-16 
क्षीयमाणेषु देहेषु देहिनां कलिदोषत: ।
वर्णाश्रमवतां धर्मे नष्टे वेदपथे नृणाम् ॥ १२ ॥
पाषण्डप्रचुरे धर्मे दस्युप्रायेषु राजसु ।
चौर्यानृतवृथाहिंसानानावृत्तिषु वै नृषु ॥ १३ ॥
शूद्रप्रायेषु वर्णेषुच्छागप्रायासु धेनुषु ।
गृहप्रायेष्वाश्रमेषु यौनप्रायेषु बन्धुषु ॥ १४ ॥
अणुप्रायास्वोषधीषु शमीप्रायेषु स्थास्नुषु ।
विद्युत्प्रायेषु मेघेषु शून्यप्रायेषु सद्मसु ॥ १५ ॥
इत्थं कलौ गतप्राये जनेषु खरधर्मिषु ।
धर्मत्राणाय सत्त्वेन भगवानवतरिष्यति ॥ १६ ॥
 
शब्दार्थ
क्षीयमाणेषु—छोटा होकर; देहेषु—शरीर में; देहिनाम्—सारे जीवों के; कलि-दोषत:—कलियुग के दूषण से; वर्ण- आश्रम-वताम्—वर्णाश्रम समाज के सदस्यों के; धर्मे—उनके धर्मों के; नष्टे—नष्ट हो जाने पर; वेद-पथे—वेदों के मार्ग पर; नृणाम्—सारे मनुष्यों के लिए; पाषण्ड-प्रचुरे—प्राय: नास्तिकता; धर्मे—धर्म में; दस्यु-प्रायेषु—प्राय: चोर; राजसु— राजा; चौर्य—लूट; अनृत—झूठ बोलना; वृथा-हिंसा—व्यर्थ की हत्या; नाना—विविध; वृत्तिषु—पेशों में; वै—निस्सन्देह; नृषु—मनुष्यों में; शूद्र-प्रायेषु—प्राय: निम्न वर्ग के शूद्र; वर्णेषु—तथाकथित वर्णों में; छाग-प्रायासु—बकरियों जैसी; धेनुषु—गौवें; गृह-प्रायेषु—घरों जैसे; आश्रमेषु—आध्यात्मिक कुटिया; यौन-प्रायेषु—विवाह से आगे तक न पहुँचने वाले; बन्धुषु—पारिवारिक बन्धन; अणु-प्रायासु—अत्यन्त लघु; ओषधीषु—जड़ी-बूटियों में; शमी-प्रायेषु—शमी वृक्षों की तरह; स्थास्नुषु—सारे वृक्षों में; विद्युत्-प्रायेषु—सदैव बिजली प्रकट करते हुए; मेघेषु—बादलों में; शून्य-प्रायेषु— धार्मिक जीवन से शून्य; सद्मसु—घरों में; इत्थम्—इस प्रकार; कलौ—कलियुग में; गत-प्राये—प्राय: समाप्त हुए; जनेषु—लोगों में; खर-धर्मिषु—गधों जैसे गुणों वाले; धर्म-त्राणाय—धर्म के उद्धार हेतु; सत्त्वेन—सतोगुण में; भगवान्—भगवान्; अवतरिष्यति—अवतरित होगा ।.
 
अनुवाद
 
 कलियुग समाप्त होने तक सभी प्राणियों के शरीर आकार में अत्यन्त छोटे हो जायेंगे और वर्णाश्रम मानने वालों के धार्मिक सिद्धान्त विनष्ट हो जायेंगे। मानव समाज वेदपथ को पूरी तरह भूल जायेगा और तथाकथित धर्म प्राय: नास्तिक होगा। राजे प्राय: चोर हो जायेंगे; लोगों का पेशा चोरी करना, झूठ बोलना तथा व्यर्थ हिंसा करना हो जायेगा और सारे सामाजिक वर्ण शूद्रों के स्तर तक नीचे गिर जायेंगे। गौवें बकरियों जैसी होंगी; आश्रम संसारी घरों से भिन्न नहीं होंगे तथा पारिवारिक सम्बन्ध तात्कालिक विवाह बंधन से आगे नहीं जायेंगे। अधिकांश वृक्ष तथा जड़ी-बूटियाँ छोटी होंगी और सारे वृक्ष बौने शमी वृक्षों जैसे प्रतीत होंगे। बादल बिजली से भरे होंगे; घर पवित्रता से रहित तथा सारे मनुष्य गधों जैसे हो जायेंगे। उस समय भगवान् पृथ्वी पर प्रकट होंगे। वे शुद्ध सतोगुण की शक्ति से कर्म करते हुए शाश्वत धर्म की रक्षा करेंगे।
 
तात्पर्य
 इन लोकों में यह महत्त्वपूर्ण बात कही गई है कि इस युग में तथाकथित धर्म नास्तिक होंगे (पाषण्डप्रचुरे धर्मे )। भागवत की भविष्यवाणी की पुष्टि में हाल ही में संयुक्त राज्य के सर्वोच्च न्यायालय ने यह आदेश दिया है कि धर्म होने के लिए विश्वास की प्रणाली में किसी परम पुरुष को मान्यता देना आवश्यक नहीं है। यही नहीं, प्राच्य देशों से लाये गये अनेक नास्तिक, शून्यवादी विश्वास प्रणालियों ने आधुनिक नास्तिक वैज्ञानिकों का ध्यान आकृष्ट किया है, जो प्राच्य तथा पाश्चात्य शून्यवाद की समानताओं की स्थापना आकर्षक रहस्यमयी पुस्तकों में करते हैं।

इन श्लोकों में कलियुग के अनेक नीरस लक्षणों का स्पष्ट वर्णन हुआ है। अन्तत: इस युग के अन्त में, भगवान् कृष्ण कल्कि के रूप में अवतरित होंगे और पृथ्वी से पूर्णरूपेण आसुरी मनोवृत्ति वाले लोगों का सफाया कर देंगे।

 
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>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥