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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 2: कलियुग के लक्षण  »  श्लोक 19-20
 
 
श्लोक  12.2.19-20 
अश्वमाशुगमारुह्य देवदत्तं जगत्पति: ।
असिनासाधुदमनमष्टैश्वर्यगुणान्वित: ॥ १९ ॥
विचरन्नाशुना क्षौण्यां हयेनाप्रतिमद्युति: ।
नृपलिङ्गच्छदो दस्यून्कोटिशो निहनिष्यति ॥ २० ॥
 
शब्दार्थ
अश्वम्—अपने घोड़े; आशु-गम्—तेज चलने वाले; आरुह्य—सवार होकर; देवदत्तम्—देवदत्त पर; जगत्-पति:— ब्रह्माण्ड के स्वामी; असिना—अपनी तलवार से; असाधु-दमनम्—असाधुओं का दमन करने वाला (घोड़ा); अष्ट—आठ; ऐश्वर्य—योग ऐश्वर्यों; गुण—तथा भगवान् के दिव्य गुणों से; अन्वित:—युक्त; विचरन्—विचरण करते हुए; आशुना— तेज; क्षौण्याम्—पृथ्वी पर; हयेन—अपने घोड़े द्वारा; अप्रतिम—अद्वितीय; द्युति:—तेज वाला; नृप-लिङ्ग—राजाओं के वेश में; छद:—अपने को भेस बदल कर रहते हुए; दस्यून्—चोरों को; कोटिश:—करोड़ों; निहनिष्यति—मार डालेगा ।.
 
अनुवाद
 
 ब्रह्माण्ड के स्वामी भगवान् कल्कि अपने तेज घोड़े देवदत्त पर सवार होंगे और हाथ में तलवार लेकर, ईश्वर के आठ योग ऐश्वर्यों तथा आठ विशिष्ट गुणों को प्रदर्शित करते हुए, पृथ्वी पर विचरण करेंगे। वे अपना अद्वितीय तेज प्रदर्शित करते हुए तथा तेज चाल से सवारी करते हुए, उन करोड़ों चोरों का वध करेंगे जो राजाओं के वेश में रहने का दुस्साहस कर रहे होंगे।
 
तात्पर्य
 इन श्लोकों में भगवान् कल्कि की लोमहर्षक लीलाओं का वर्णन हुआ है। कोई भी व्यक्ति ऐसे शक्तिशाली सुन्दर व्यक्ति की ओर आकृष्ट हुए बिना नहीं रहेगा जो बिजली की चाल वाले अद्भुत घोड़े पर सवार होकर अपने हाथ में तलवार लेकर क्रूर आसुरी लोगों को दण्ड दे रहा हो और उनका विध्वंस कर रहा हो।

निस्सन्देह, उन्मादी भौतिकतावादी लोग यह तर्क कर सकते हैं कि भगवान् कल्कि का यह चित्र मानव मन की उपज है—पौराणिक देवता का चित्र है, जो उन लोगों द्वारा चित्रित किया गया है जिनका विश्वास किसी श्रेष्ठ व्यक्ति पर होता है। किन्तु यह तर्क युक्ति संगत नहीं है और न ही इसमें कोई दम है। यह कतिपय लोगों का मत है। हमें जल चाहिए किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि मनुष्य जल उत्पन्न करता है। हमें भोजन, आक्सीजन तथा अन्य बहुत-सी वस्तुओं की आवश्यकता होती है जिन्हें हम उत्पन्न नहीं करते। चूँकि हमारा सामान्य अनुभव यही है कि हमारी आवश्यकताएँ बाह्य जगत में विद्यमान प्राप्य वस्तुओं के अनुरूप हैं अतएव भगवान् की आवश्यकता से यह सूचित होता है कि भगवान् का अस्तित्व है। दूसरे शब्दों में, प्रकृति हमें उन वस्तुओं की आवश्यकता का ज्ञान कराती है, जो वास्तव में विद्यमान होती हैं और जिनकी आवश्यकता हमारे कल्याण के लिए होती है। इसी तरह हमें ईश्वर की आवश्यकता का अनुभव होता है क्योंकि हम ईश्वर के अंश हैं और उनके बिना रह नहीं सकते। कलियुग के अन्त में यही ईश्वर बलशाली कल्कि अवतार के रूप में प्रकट होगा और असुरों के दूषण का सफाया कर देगा।

 
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