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श्लोक 12.2.22  |
तेषां प्रजाविसर्गश्च स्थविष्ठ: सम्भविष्यति ।
वासुदेवे भगवति सत्त्वमूर्तौ हृदि स्थिते ॥ २२ ॥ |
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शब्दार्थ |
तेषाम्—उनकी; प्रजा—सन्तान की; विसर्ग:—उत्पत्ति; च—तथा; स्थविष्ठ:—प्रचुर; सम्भविष्यति—होगा; वासुदेवे— वासुदेव में; भगवति—भगवान्; सत्त्व-मूर्तौ—सतोगुणी स्वरूप में; हृदि—हृदयों में; स्थिते—स्थित ।. |
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अनुवाद |
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जब भगवान् वासुदेव बचे हुए नागरिकों के हृदयों में अपने दिव्य सात्विक रूप में प्रकट होते हैं, वे फिर से पृथ्वी की जनसंख्या को काफी बढ़ा देंगे। |
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