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श्लोक 12.2.34  |
दिव्याब्दानां सहस्रान्ते चतुर्थे तु पुन: कृतम् ।
भविष्यति तदा नृणां मन आत्मप्रकाशकम् ॥ ३४ ॥ |
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शब्दार्थ |
दिव्य—देवताओं के; अब्दानाम्—वर्ष; सहस्र—एक हजार; अन्ते—अन्त में; चतुर्थे—चतुर्थ युग, कलियुग में; तु—तथा; पुन:—फिर; कृतम्—सत्ययुग; भविष्यति—होगा; तदा—तब; नृणाम्—मनुष्यों के; मन:—मन; आत्म-प्रकाशकम्— स्वयं प्रकाशित ।. |
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अनुवाद |
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कलियुग के एक हजार दैवी वर्षों के बाद, सत्ययुग पुन: प्रकट होगा। उस समय सारे मनुष्यों के मन स्वयं प्रकाशमान् हो उठेंगे। |
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