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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 2: कलियुग के लक्षण  »  श्लोक 39
 
 
श्लोक  12.2.39 
कृतं त्रेता द्वापरं च कलिश्चेति चतुर्युगम् ।
अनेन क्रमयोगेन भुवि प्राणिषु वर्तते ॥ ३९ ॥
 
शब्दार्थ
कृतम्—सत्ययुग; त्रेता—त्रेतायुग; द्वापरम्—द्वापर युग; —तथा; कलि:—कलियुग; —तथा; इति—इस प्रकार; चतु:-युगम्—चार युगों का चक्र; अनेन—इससे; क्रम—क्रमवार; योगेन—व्यवस्था; भुवि—पृथ्वी पर; प्राणिषु—जीवों के बीच; वर्तते—लगातार चल रही है ।.
 
अनुवाद
 
 इस पृथ्वी पर जीवों के बीच चार युगों का—सत्य, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग का— चक्र निरन्तर चलता रहता है, जिससे घटनाओं का वही सामान्य अनुक्रम पिष्टपेषित होता है।
 
 
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