भले ही अभी मनुष्य का शरीर राजा की उपाधि से युक्त हो, किन्तु अन्त में इसका नाम कीड़े, मल या राख हो जायेगा। जो व्यक्ति अपने शरीर के लिए अन्य जीवों को पीड़ा पहुँचाता है, वह अपने हित के विषय में क्या जान सकता है क्योंकि उसके कार्य उसे नरक की ओर ले जाने वाले होते हैं?
तात्पर्य
मृत्यु के बाद शरीर को दफना दिया जाता है और कीड़े उसे खा जाते हैं या फिर उसे सडक़ पर या जंगल में फेंक दिया जाता है, जिससे पशु उसे खाकर शेष भाग को मल रूप में निकाल दें या फिर उसे जलाकर भस्म कर दिया जाता है। इसलिए अन्य जीवों के शरीरों को चोट पहुँचाने के लिए अपने नश्वर शरीर का उपयोग करके मनुष्य को नरक का मार्ग प्रशस्त नहीं करना चाहिए। इस श्लोक में भूत शब्द में वे अमानुषी जीव भी सम्मिलित हैं, जिन्हें ईश्वर ने ही बनाया है। मनुष्य को ईर्ष्यापूर्ण हिंसा त्याग कर कृष्णभावनामृत की विधि से हर वस्तु में ईश्वर का दर्शन करना सीखना चाहिए।
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