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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 2: कलियुग के लक्षण  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  12.2.7 
एवं प्रजाभिर्दुष्टाभिराकीर्णे क्षितिमण्डले ।
ब्रह्मविट्‍क्षत्रशूद्राणां यो बली भविता नृप: ॥ ७ ॥
 
शब्दार्थ
एवम्—इस तरह से; प्रजाभि:—जनता से; दुष्टाभि:—भ्रष्ट की हुई; आकीर्णे—एकत्र हुई; क्षिति-मण्डले—पृथ्वीमण्डल पर; ब्रह्म—ब्राह्मणों; विट्—वैश्यगण; क्षत्र—क्षत्रिय; शूद्राणाम्—तथा शूद्रों के बीच; य:—जो भी; बली—सबसे बलवान; भविता—होगा; नृप:—राजा ।.
 
अनुवाद
 
 इस तरह ज्यों-ज्यों पृथ्वी भ्रष्ट जनता से भरती जायेगी, त्यों-त्यों समस्त वर्णों में से जो अपने को सबसे बलवान दिखला सकेगा वह राजनैतिक शक्ति प्राप्त करेगा।
 
 
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