हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 2: कलियुग के लक्षण  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  12.2.8 
प्रजा हि लुब्धै राजन्यैर्निर्घृणैर्दस्युधर्मभि: ।
आच्छिन्नदारद्रविणा यास्यन्ति गिरिकाननम् ॥ ८ ॥
 
शब्दार्थ
प्रजा:—नागरिक; हि—निस्सन्देह; लुब्धै:—लालची; राजन्यै:—राजसी वर्ग के द्वारा; निर्घृणै:—निर्दय; दस्यु—सामान्य चोरों के; धर्मभि:—स्वभाव के अनुसार कर्म करते हुए; आच्छिन्न—हर लिए गये; दार—पत्नी; द्रविणा:—तथा सम्पत्ति; यास्यन्ति—जायेंगे; गिरि—पर्वत; काननम्—तथा जंगल में ।.
 
अनुवाद
 
 जनता ऐसे लोभी तथा निष्ठुर शासकों द्वारा, जिनका आचरण सामान्य चोरों जैसा होगा, अपनी पत्नियाँ तथा सम्पत्ति छीन लिये जाने पर, पर्वतों तथा जंगलों में भाग जायेगी।
 
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥