शौक्लायनि: ब्रह्मबलि:—शौक्लायनि तथा ब्रह्मबलि; मोदोष: पिप्पलायनि:—मोदोष तथा पिप्पलायनि; वेददर्शस्य— वेददर्श के; शिष्या:—शिष्य; ते—वे; पथ्य-शिष्यान्—पथ्य के शिष्य; अथो—और भी; शृणु—सुनो; कुमुद: शुनक:— कुमुद तथा शुनक; ब्रह्मन्—हे ब्राह्मण, शौनक; जाजलि:—जाजलि; च—तथा; अपि—भी; अथर्व-वित्—अथर्ववेद के ज्ञाता ।.
अनुवाद
शौक्लायनि, ब्रह्मबलि, मोदोष तथा पिप्पलायनि वेददर्श के शिष्य थे। मुझसे पथ्य के भी शिष्यों के नाम सुनो। हे ब्राह्मण, वे हैं—कुमुद, शुनक तथा जाजलि। वे सभी अथर्ववेद को अच्छी तरह जानते थे।
तात्पर्य
श्रील श्रीधर स्वामी के अनुसार वेददर्श ने अथर्ववेद के अपने संस्करण को चार भागों में विभाजित करके उन्हें अपने चार शिष्यों को पढ़ाया। पथ्य ने अपने संस्करण के तीन भाग किये और यहाँ पर उल्लिखित तीन शिष्यों को उनकी शिक्षा दी।
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