श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 7: पौराणिक साहित्य  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  12.7.6 
अधीयन्त व्यासशिष्यात् संहितां मत्पितुर्मुखात् ।
एकैकामहमेतेषां शिष्य: सर्वा: समध्यगाम् ॥ ६ ॥
 
शब्दार्थ
अधीयन्त—उन्होंने सीखा; व्यास-शिष्यात्—व्यासदेव के शिष्य (रोमहर्षण) से; संहिताम्—पुराणों के संग्रह; मत्- पितु:—मेरे पिता के; मुखात्—मुख से; एक-एकाम्—हर एक ने एक अंश सीखा; अहम्—मैंने; एतेषाम्—इनमें से; शिष्य:—शिष्य; सर्वा:—सारे संग्रह; समध्यगाम्—पूरी तरह सीखा ।.
 
अनुवाद
 
 इनमें से प्रत्येक ने मेरे पिता रोमहर्षण से जोकि श्रील व्यासदेव के शिष्य थे, पुराणों की छहों संहिताओं को पढ़ा। मैं इन छहो आचार्यों का शिष्य बन गया और मैंने इस पौराणिक ज्ञान का भलीभाँति प्रस्तुतिकरण सीखा।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥