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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 9: मार्कण्डेय ऋषि को भगवान् की मायाशक्ति के दर्शन  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  12.9.1 
सूत उवाच
संस्तुतो भगवानित्थं मार्कण्डेयेन धीमता ।
नारायणो नरसख: प्रीत आह भृगूद्वहम् ॥ १ ॥
 
शब्दार्थ
सूत: उवाच—सूत गोस्वामी ने कहा; संस्तुत:—भलीभाँति स्तुति किये जाने पर; भगवान्—भगवान्; इत्थम्—इस तरह; मार्कण्डेयेन—मार्कण्डेय द्वारा; धी-मता—बुद्धिमान मुनि; नारायण:—नारायण; नर-सख:—नर के मित्र; प्रीत:—प्रसन्न; आह—बोले; भृगु-उद्वहम्—अत्यन्त प्रसिद्ध भृगुवंशी से ।.
 
अनुवाद
 
 सूत गोस्वामी ने कहा : नर के मित्र, भगवान् नारायण, बुद्धिमान मुनि मार्कण्डेय द्वारा की गई उपयुक्त स्तुति से तुष्ट हो गये। अत: वे उन श्रेष्ठ भृगवंशी से बोले।
 
 
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