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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 9: मार्कण्डेय ऋषि को भगवान् की मायाशक्ति के दर्शन  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  12.9.10 
तस्यैकदा भृगुश्रेष्ठ पुष्पभद्रातटे मुने: ।
उपासीनस्य सन्ध्यायां ब्रह्मन् वायुरभून्महान् ॥ १० ॥
 
शब्दार्थ
तस्य—जब वह; एकदा—एक दिन; भृगु-श्रेष्ठ—हे भृगुवंशियों में सर्वश्रेष्ठ; पुष्पभद्रा-तटे—पुष्पभद्रा नदी के तट पर; मुने:—मुनि के; उपासीनस्य—पूजा कर रहे थे; सन्ध्यायाम्—दिन की संधि पर; ब्रह्मन्—हे ब्राह्मण; वायु:—वायु; अभूत्—चलने लगी; महान्—तेज ।.
 
अनुवाद
 
 हे ब्राह्मण शौनक, हे भृगुश्रेष्ठ, एक दिन जब मार्कण्डेय पुष्पभद्रा नदी के तट पर संध्याकालीन पूजा कर रहे थे तो सहसा तेज वायु चलने लगी।
 
 
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