श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 9: मार्कण्डेय ऋषि को भगवान् की मायाशक्ति के दर्शन  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  12.9.11 
तं चण्डशब्दं समुदीरयन्तं
बलाहका अन्वभवन् कराला: ।
अक्षस्थविष्ठा मुमुचुस्तडिद्भ‍ि:
स्वनन्त उच्चैरभिवर्षधारा: ॥ ११ ॥
 
शब्दार्थ
तम्—वह वायु; चण्ड-शब्दम्—भयंकर शब्द; समुदीरयन्तम्—उत्पन्न करता हुआ; बलाहका:—बादल; अनु—पीछे पीछे; अभवन्—प्रकट हुए; कराला:—भयानक; अक्ष—पहिये की तरह; स्थविष्ठा:—ठोस; मुमुचु:—छोड़ा; तडिद्भि:— बिजली के साथ; स्वनन्त:—गूँजते; उच्चै:—तेज; अभि—सभी दिशाओं; वर्ष—वर्षा की; धारा:—धारा ।.
 
अनुवाद
 
 उस वायु ने भयंकर शब्द उत्पन्न किया और अपने साथ भयावने बादल लेती आई जिनके साथ बिजली तथा गर्जना थी और जिन्होंने सभी दिशाओं में गाड़ी के पहियों जितनी भारी मूसलाधार वर्षा की।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥