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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 9: मार्कण्डेय ऋषि को भगवान् की मायाशक्ति के दर्शन  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  12.9.14 
तस्यैवमुद्वीक्षत ऊर्मिभीषण:
प्रभञ्जनाघूर्णितवार्महार्णव: ।
आपूर्यमाणो वरषद्भ‍िरम्बुदै:
क्ष्मामप्यधाद् द्वीपवर्षाद्रिभि: समम् ॥ १४ ॥
 
शब्दार्थ
तस्य—जब वे; एवम्—इस तरह; उद्वीक्षत:—देख रहे थे; ऊर्मि—लहरें; भीषण:—भयावनी; प्रभञ्जन—अंधड़ से; आघूर्णित—चक्कर काटता; वा:—जल; महा-अर्णव:—महासागर; आपूर्यमान:—भर कर; वरषद्भि:—वर्षा से; अम्बु दै:—बादलों से; क्ष्माम्—पृथ्वी को; अप्यधात्—ढक लिया; द्वीप—द्वीप; वर्ष—महाद्वीप; अद्रिभि:—पर्वतों को; समम्— एकसाथ ।.
 
अनुवाद
 
 मार्कण्डेय के देखते-देखते बादल से हो रही वर्षा समुद्र को भरती रही जिससे महासागर के जल ने अंधड़ द्वारा भयानक लहरों के उठने से पृथ्वी के द्वीपों, पर्वतों तथा महाद्वीपों को ढक लिया।
 
 
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