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श्लोक 12.9.19  |
अयुतायुतवर्षाणां सहस्राणि शतानि च ।
व्यतीयुर्भ्रमतस्तस्मिन् विष्णुमायावृतात्मन: ॥ १९ ॥ |
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शब्दार्थ |
अयुत—दस हजार का; अयुत—दस हजार गुणा; वर्षाणाम्—वर्षों के; सहस्राणि—हजारों; शतानि—सैकड़ों; च—तथा; व्यतीयु:—बीत गये; भ्रमत:—विचरण करते हुए; तस्मिन्—उसमें; विष्णु-माया—भगवान् विष्णु की माया से; आवृत— आच्छादित; आत्मन:—मन ।. |
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अनुवाद |
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मार्कण्डेय को उस जलप्लावन में इधर-उधर घूमते करोड़ों वर्ष बीत गये; उनका मन भगवान् विष्णु की माया से विमोहित था। |
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