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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 9: मार्कण्डेय ऋषि को भगवान् की मायाशक्ति के दर्शन  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  12.9.21 
प्रागुत्तरस्यां शाखायां तस्यापि दद‍ृशे शिशुम् ।
शयानं पर्णपुटके ग्रसन्तं प्रभया तम: ॥ २१ ॥
 
शब्दार्थ
प्राक्-उत्तरस्याम्—उत्तर पूर्व की ओर; शाखायाम्—एक शाखा में; तस्य—उस वृक्ष की; अपि—निस्सन्देह; ददृशे—देखा; शिशुम्—एक शिशु को; शयानम्—लेटे हुए; पर्ण-पुटके—पत्ते के गर्त के भीतर; ग्रसन्तम्—निगलते हुए; प्रभया— उसके तेज से; तम:—अँधेरा ।.
 
अनुवाद
 
 उन्होंने उस वृक्ष की उत्तर-पूर्व की एक शाखा में एक पत्ते के भीतर एक शिशु को लेटे देखा। इस शिशु का तेज अंधकार को लील रहा था।
 
 
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