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श्लोक 12.9.21  |
प्रागुत्तरस्यां शाखायां तस्यापि ददृशे शिशुम् ।
शयानं पर्णपुटके ग्रसन्तं प्रभया तम: ॥ २१ ॥ |
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शब्दार्थ |
प्राक्-उत्तरस्याम्—उत्तर पूर्व की ओर; शाखायाम्—एक शाखा में; तस्य—उस वृक्ष की; अपि—निस्सन्देह; ददृशे—देखा; शिशुम्—एक शिशु को; शयानम्—लेटे हुए; पर्ण-पुटके—पत्ते के गर्त के भीतर; ग्रसन्तम्—निगलते हुए; प्रभया— उसके तेज से; तम:—अँधेरा ।. |
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अनुवाद |
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उन्होंने उस वृक्ष की उत्तर-पूर्व की एक शाखा में एक पत्ते के भीतर एक शिशु को लेटे देखा। इस शिशु का तेज अंधकार को लील रहा था। |
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