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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 9: मार्कण्डेय ऋषि को भगवान् की मायाशक्ति के दर्शन  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  12.9.26 
तद्दर्शनाद् वीतपरिश्रमो मुदा
प्रोत्फुल्ल‍हृत्पद्मविलोचनाम्बुज: ।
प्रहृष्टरोमाद्भ‍ुतभावशङ्कित:
प्रष्टुं पुरस्तं प्रससार बालकम् ॥ २६ ॥
 
शब्दार्थ
तत्-दर्शनात्—उस शिशु का दर्शन करने से; वीत—दूर हो गया; परिश्रम:—थकान; मुदा—हर्ष के कारण; प्रोत्फुल्ल— खिल उठा; हृत्-पद्म—हृदय का कमल; विलोचन-अम्बुज:—तथा उसकी कमल जैसी आँखें; प्रहृष्ट—खड़े हो गये; रोमा—शरीर के रोएँ; अद्भुत-भाव—इस अद्भुत रूप की पहचान के बारे में; शङ्कित:—शंकालु; प्रष्टुम्—पूछने के लिए; पुर:—आगे; तम्—उसके; प्रससार—पास गया; बालकम्—बालक के ।.
 
अनुवाद
 
 जैसे ही मार्कण्डेय ने बालक को देखा उनकी सारी थकान जाती रही। निस्सन्देह उनको इतनी अधिक प्रसन्नता हुई कि उनका हृदय तथा उनके नेत्र कमल की भाँति पूरी तरह प्रफुल्लित हो उठे और उन्हें रोमांच हो आया। इस बालक की अद्भुत पहचान के विषय में शंकित मुनि उसके पास पहुँचे।
 
तात्पर्य
 मार्कण्डेय उस बालक से उसकी पहचान पूछना चाहते थे, इसीलिए वे उसके पास गये।
 
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