जैसे ही मार्कण्डेय ने बालक को देखा उनकी सारी थकान जाती रही। निस्सन्देह उनको इतनी अधिक प्रसन्नता हुई कि उनका हृदय तथा उनके नेत्र कमल की भाँति पूरी तरह प्रफुल्लित हो उठे और उन्हें रोमांच हो आया। इस बालक की अद्भुत पहचान के विषय में शंकित मुनि उसके पास पहुँचे।
तात्पर्य
मार्कण्डेय उस बालक से उसकी पहचान पूछना चाहते थे, इसीलिए वे उसके पास गये।
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