श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 9: मार्कण्डेय ऋषि को भगवान् की मायाशक्ति के दर्शन  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  12.9.27 
तावच्छिशोर्वै श्वसितेन भार्गव:
सोऽन्त: शरीरं मशको यथाविशत् ।
तत्राप्यदो न्यस्तमचष्ट कृत्‍स्‍नशो
यथा पुरामुह्यदतीव विस्मित: ॥ २७ ॥
 
शब्दार्थ
तावत्—उसी क्षण; शिशो:—शिशु का; वै—निस्सन्देह; श्वसितेन—श्वास लेने से; भार्गव:—भृगुवंशी; स:—वह; अन्त: शरीरम्—शरीर के भीतर; मशक:—मच्छर; यथा—जिस तरह; अविशत्—घुस गया; तत्र—वहाँ पर; अपि—निस्सन्देह; अद:—यह ब्रह्माण्ड; न्यस्तम्—रखा हुआ; अचष्ट—उसने देखा; कृत्स्नश:—समूचा; यथा—जिस तरह; पुरा—पहले; अमुह्यत्—विमोहित हो चुका था; अतीव—अत्यधिक; विस्मित:—चकित ।.
 
अनुवाद
 
 तभी उस शिशु ने श्वास ली जिससे मार्कण्डेय मच्छर की तरह उसके शरीर के भीतर खिंच गये। वहाँ पर ऋषि ने सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को प्रलय के पूर्व की स्थिति में सुव्यवस्थित पाया। यह देख कर मार्कण्डेय अत्यधिक आश्चर्यचकित तथा मोहग्रस्त हो गए।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥