हम तुम्हारे आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत से पूर्णतया तुष्ट हैं। अब जो वर चाहो, चुन लो क्योंकि मैं तुम्हारी इच्छा पूरी कर सकता हूँ। तुम समस्त सौभाग्य का भोग करो।
तात्पर्य
श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर बतलाते हैं कि भगवान् ने इस श्लोक के प्रारम्भ में बहुवचन “हम” का प्रयोग किया है क्योंकि वे अपना उल्लेख शिव तथा उमा के साथ-साथ कर रहे थे जिनकी स्तुति बाद में मार्कण्डेय द्वारा की जायेगी। तब भगवान् ने एकवचन “मैं” का प्रयोग किया क्योंकि अन्तत:, एकमात्र भगवान् नारायण (कृष्ण) ही जीवन की सर्वोच्च सिद्धि— शाश्वत कृष्णभावनामृत—प्रदान कर सकते हैं।
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