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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 9: मार्कण्डेय ऋषि को भगवान् की मायाशक्ति के दर्शन  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  12.9.33 
तावत् स भगवान् साक्षाद् योगाधीशो गुहाशय: ।
अन्तर्दध ऋषे: सद्यो यथेहानीशनिर्मिता ॥ ३३ ॥
 
शब्दार्थ
तावत्—तभी; स:—वह; भगवान्—भगवान्; साक्षात्—प्रत्यक्ष; योग-अधीश:—योगेश्वर; गुहा-शय:—समस्त जीवों के हृदयों में छिपे; अन्तर्दधे—अन्तर्धान हो गये; ऋषे:—ऋषि के समक्ष; सद्य:—सहसा; यथा—जिस तरह; ईहा—प्रयास द्वारा वस्तु; अनीश—अक्षम व्यक्ति द्वारा; निर्मिता—बनाई हुई ।.
 
अनुवाद
 
 तभी भगवान्, जोकि योगेश्वर हैं तथा हर एक के हृदय में छिपे रहते हैं, ऋषि की आँखों से ओझल हो गये जिस तरह अक्षम व्यक्ति की सारी उपलब्धियाँ सहसा विलीन हो जाती हैं।
 
 
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