हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 9: मार्कण्डेय ऋषि को भगवान् की मायाशक्ति के दर्शन  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  12.9.5 
गृहीत्वाजादयो यस्य श्रीमत्पादाब्जदर्शनम् ।
मनसा योगपक्वेन स भवान् मेऽक्षिगोचर: ॥ ५ ॥
 
शब्दार्थ
गृहीत्वा—पाकर; अज-आदय:—ब्रह्मा तथा अन्य; यस्य—जिसके; श्रीमत्—सर्व ऐश्वर्यवान्; पाद-अब्ज—चरणकमलों का; दर्शनम्—दर्शन; मनसा—मन से; योग-पक्वेन—योग में परिपक्व; स:—वह; भवान्—आप; मे—मेरी; अक्षि— आँखों को; गो-चर:—दृश्य ।.
 
अनुवाद
 
 ब्रह्मा जैसे देवताओं ने आपके सुन्दर चरणकमलों का दर्शन करके ही उच्च पद प्राप्त किया क्योंकि उनके मन योगाभ्यास से परिपक्व हो चुके थे। और हे प्रभु, अब आप मेरे समक्ष साक्षात् प्रकट हुए हैं।
 
तात्पर्य
 मार्कण्डेय ऋषि इंगित करते हैं कि ब्रह्मा जैसे उच्च देवताओं ने भगवान् के चरणकमलों का दर्शन करके ही उच्च पद प्राप्त किया, तो भी मार्कण्डेय ऋषि भगवान् कृष्ण का अब पूरा शरीर देख पा रहे थे। इस तरह वे अपने सौभाग्य की हद की कल्पना तक नहीं कर पाये।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥