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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 9: मार्कण्डेय ऋषि को भगवान् की मायाशक्ति के दर्शन  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  12.9.7 
सूत उवाच
इतीडितोऽर्चित: काममृषिणा भगवान् मुने ।
तथेति स स्मयन् प्रागाद् बदर्याश्रममीश्वर: ॥ ७ ॥
 
शब्दार्थ
सूत: उवाच—सूत गोस्वामी ने कहा; इति—इन शब्दों द्वारा; ईडित:—स्तुति किये गये; अर्चित:—पूजित; कामम्— संतोषजनक रूप से; ऋषिणा—मार्कण्डेय ऋषि द्वारा; भगवान्—भगवान्; मुने—हे विज्ञ शौनक; तथा इति—तथास्तु, ऐसा ही हो; स:—वह; स्मयन्—मुसकाते हुए; प्रागात्—चले गये; बदरी-आश्रमम्—बदरिकाश्रम; ईश्वर:—भगवान् ।.
 
अनुवाद
 
 सूत गोस्वामी ने कहा : हे विज्ञ शौनक, मार्कण्डेय की स्तुति तथा पूजा से इस तरह तुष्ट हुए भगवान् ने हँसते हुए उत्तर दिया “तथास्तु” और तब बदरिकाश्रम स्थित अपनी कुटिया चले गये।
 
तात्पर्य
 इस श्लोक में भगवान् तथा ईश्वर शब्द परमेश्वर के नर तथा नारायण दो मुनि अवतारों के द्योतक हैं। श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर के अनुसार भगवान् इसलिए खेदपूर्वक हँसे क्योंकि वे चाहते हैं कि उनके भक्त उनकी मायाशक्ति से दूर रहते जाँए। भगवान् की मायाशक्ति देखने की उत्सुकता से कभी कभी पापपूर्ण भौतिक इच्छा उत्पन्न हो सकती है। तो भी, अपने भक्त मार्कण्डेय को प्रसन्न करने के लिए भगवान् ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली जिस तरह कि कोई पिता, जो अपने पुत्र को किसी हानिप्रद इच्छा को छोडऩे के लिए आश्वस्त नहीं कर पाता, तो वह उसे कुछ कष्ट भोगने देता है, जिससे वह स्वेच्छा से उससे विरत हो सके। इस तरह, यह जानते हुए कि मार्कण्डेय पर क्या बीतने वाली है, भगवान् अपनी मायाशक्ति दिखाने की तैयारी करते हुए हँसे।
 
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