विराट रूप वाले आदि पुरुष की छाती ज्योतिष्क (स्वर्ग) लोक है, उसकी गर्दन महर्लोक है, उसका मुख जन:लोक है और उसका मस्तक तप:लोक है। सर्वोच्च लोक, जिसे सत्यलोक कहते हैं, एक हजार सिरों (मस्तिष्कों) वाले उनआदि पुरुष का सिर है।
तात्पर्य
सूर्य तथा चन्द्रमा जैसे तेजवान ज्योतिर्लोक ब्रह्माण्ड के मध्य में स्थित हैं, अतएव वे भगवान् के आदि विराट रूप के वक्ष:स्थल कहलाते हैं। इस ज्योतिर्लोक के ऊपर जिसे देवताओं का राज्य या स्वर्गलोक भी कहते हैं, मह:, जन: तथा तप: लोक हैं और सबके ऊपर सत्य लोक है, जहाँ प्रकृति के समस्त गुणों के मुख्य निर्देशक अर्थात् विष्णु, ब्रह्मा तथा शिव निवास करते हैं। ये विष्णु क्षीरोदकशायी विष्णु कहलाते हैं और ये सभी जीवों में परमात्मा की भाँति कार्य करते हैं। कारणार्णव में असंख्य ब्रह्माण्ड तैरते रहते हैं और इनसब में भगवान् के विराट रूप का प्रतिनिधित्व, असंख्य सूर्यों, चन्द्रमाओं, देवताओं, ब्रह्माओं, विष्णुओं तथा शिवों के रूप में होता है और ये सभी भगवान् कृष्ण की अचिन्त्य शक्ति के एक अंश में स्थित हैं जैसाकि भगवद्गीता (१०.४२) में कहा गया है।
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