ऐसे ईर्ष्यालु गृहस्थ (गृहमेधी) का जीवन रात्रि में या तो सोने या मैथुन में रत रहने तथा दिन में धन कमाने या परिवार के सदस्यों के भरण-पोषण में बीतता है।
तात्पर्य
वर्तमान मानव सभ्यता, मुख्यत: रात्रि में सोने तथा मैथुन करने और दिन में धन कमाने और उसे परिवार के भरण-पोषण हेतु खर्च करने के सिद्धान्तों पर आधारित है। इस तरह की मानव सभ्यता भागवत विचारधारा द्वारा निन्दित है।
चूँकि मानव जीवन भौतिक पदार्थ तथा आत्मा का संमेल है, अतएव वैदिक ज्ञान की पूरी प्रकिया आत्मा को पदार्थ के संदूषण से मुक्त करने की दिशा में प्रेरित रहती है। इससे सम्बन्धित ज्ञान आत्म- तत्त्व कहलाता है। जो लोग अत्यधिक भौतिकतावादी हैं, वे इस ज्ञान से अनजान रहते हैं और भौतिक भोग के लिए आर्थिक विकास के प्रति अधिक उन्मुख होते हैं। ऐसे भौतिकतावादी लोग कर्मी कहलाते हैं और उन्हें नियमित आर्थिक विकास या यौनाचार के लिए स्त्री-संगति की छूट रहती है। जो लोग कर्मियों से ऊपर हैं—यथा ज्ञानी, योगी तथा भक्त, उन्हें यौनाचार सर्वथा वर्जित है। कर्मी लोग आत्म- तत्त्व से बहुत कुछ विहीन होते हैं और इस तरह उनका जीवन बिना किसी आध्यात्मिक लाभ के बीत जाता है। यह मनुष्य-जीवन, न तो आर्थिक विकास के लिए कठिन श्रम करने के निमित्त है, न शूकरों- कूकरों की भाँति मैथुन में रत रहने के लिए है। यह तो भौतिक जीवन की समस्याओं तथा उनके फलस्वरूप उत्पन्न कष्टों का हल ढूँढऩे के लिए है। इस तरह कर्मीजन रात्रि को सोकर तथा मैथुन में रत रहकर और दिन को सम्पत्ति-संग्रह करने के लिए कठिन श्रम करके बिता देते हैं। ऐसा करके वे भौतिकतावादी जीवन के स्तर को ऊँचा उठाने का प्रयास करते हैं। यहाँ पर भौतिकतावादी जीवन का सारांश-रुप में वर्णन हुआ है और अगले श्लोक में बताया गया है कि किस तरह लोग मनुष्य-जीवन के वरदान को मूर्खतापूर्वक नष्ट करते हैं।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.