वे कहते हैं कि वैदिक स्तोत्र भगवान् के मस्तक हैं और मृत्यु का देवता तथा पापियों को दण्ड देनेवाला यम उनकी दाढ़ें हैं। स्नेह की कला ही उनके दाँत हैं और सर्वाधिक मोहिनी माया ही उनकी मुस्कान है। यह भौतिक सृष्टि रूपी महान् सागर उनकी चितवन स्वरूप है।
तात्पर्य
वेदों के अनुसार यह भौतिक सृष्टि भौतिक शक्ति पर भगवान् के दृष्टिपात का प्रतिफल है, जिसे यहाँ पर अत्यन्त मोहिनी माया के रूप में बताया गया है। ऐसे बद्धजीव, जो ऐसी भौतिकता के द्वारा आकृष्ट होते हैं, उन्हें जान लेना चाहिए कि भौतिक नश्वर सृष्टि वास्तविकता का अनुकरणमात्र है और जो लोग भगवान् की ऐसी आकर्षक चितवन से मोहित हैं, वे पापियों के नियन्त्रक यमराज के नियन्त्रण में रख दिये जाते हैं। भगवान् जब स्नेह से हँसते हैं, तो उनके दाँत दिखते हैं। जो बुद्धिमान व्यक्ति भगवान् के विषय में इस सचाई को ग्रहण करता है, वह उनका शरणागत हो जाता है।
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