श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 1: ईश अनुभूति का प्रथम सोपान  »  श्लोक 36
 
 
श्लोक  2.1.36 
वयांसि तद्व्याकरणं विचित्रं
मनुर्मनीषा मनुजो निवास: ।
गन्धर्वविद्याधरचारणाप्सर:
स्वरस्मृतीरसुरानीकवीर्य: ॥ ३६ ॥
 
शब्दार्थ
वयांसि—विभिन्न प्रकार के पक्षी; तत्-व्याकरणम्—शब्दावली; विचित्रम्—कलात्मक; मनु:—मनुष्यों के पिता; मनीषा— विचार; मनुज:—मानव जाति (मनु-पुत्र); निवास:—निवास; गन्धर्व—गन्धर्व नामक मनुष्य; विद्याधर—विद्याधर; चारण— चारण; अप्सर:—देवदूत; स्वर—संगीतात्मक स्वर-लहरी; स्मृती:—स्मृति; असुर-अनीक—आसुरी सैनिक; वीर्य:—शक्ति ।.
 
अनुवाद
 
 विभिन्न प्रकार के पक्षी उनकी दक्ष कलात्मक रुचि के सूचक हैं। मानवजाति के पिता, मनु, उनकी आदर्श बुद्धि के प्रतीक हैं और मानवता उनका निवास है। गन्धर्व, विद्याधर, चारण तथा देवदूत जैसी दैवी योनियाँ उनके संगीत की स्वर-लहरी को व्यक्त करती हैं और आसुरी सैनिक उनकी अद्भुत शक्ति के प्रतिरूप हैं।
 
तात्पर्य
 भगवान् का सौन्दर्य-बोध मोर, तोता तथा कोयल जैसे विविध पक्षियों की कलात्मक रंगबिरंगी सृष्टि से प्रकट होता है। गन्धर्व तथा विद्याधर जैसी दैवी मानवी योनियाँ आश्चर्यजनक गायन करती हैं और स्वर्ग के देवताओं के मन को भी मोहित कर लेती हैं, जो उनकी संगीत लहरी भगवान् का संगीत-बोध व्यक्त करती है। तो वे निर्विशेष कैसे हो सकते हैं? उनकी संगीत रुचि, कलात्मक बोध तथा आदर्श एवं विफल न होनेवाली बुद्धि उनके परम व्यक्तित्व के विभिन्न लक्षण हैं। मनु संहिता मानवता के लिए आदर्श विधि ग्रन्थ है और प्रत्येक व्यक्ति को सामाजिक ज्ञान के इस महान् ग्रन्थ का पालन करना होता है। मानव समाज भगवान् का आवास है। इसका अर्थ यह होता है कि मनुष्य ईश साक्षात्कार एवं ईश्वर की संगति के लिए है। यह जीवन, बद्धजीव के लिए अपनी नित्य ईश-चेतना को पुन: प्राप्त करने के लिए, एक सुअवसर होता है, जिससे वह जीवन के उद्देश्य को पूरा कर सके। महाराज प्रह्लाद असुरों के कुल में भगवान् के सही प्रतिनिधि हैं। कोई भी जीव भगवान् के विराट शरीर से दूर नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति का परम शरीर के प्रति विशेष कर्तव्य होता है। प्रत्येक व्यक्ति को दिए गए इस विशेष कर्तव्य को पूरा कर पाने में व्यवधान पडऩे से जीवों के बीच वैमनस्य आता है, किन्तु जब परमेश्वर के साथ सम्बन्ध स्थापित हो जाता है, तो समस्त जीवों में, यहाँ तक कि जंगली पशुओं में तथा मानव समाज में, पूर्ण एकता हो जाती है। भगवान् चैतन्य महाप्रभु ने इस सजीव एकता का प्रदर्शन मध्यप्रदेश के जंगल में किया, जहाँ व्याघ्र, हाथी तथा अन्य हिंसक पशुओं ने परमेश्वर के यशोगान में पूर्ण सहयोग दिखलाया। सारे विश्व में शान्ति तथा एकता का यही मार्ग है।
 
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