ब्रह्म—ब्राह्मण; आननम्—मुख; क्षत्र—क्षत्रिय; भुज:—बाँहें; महात्मा—विराट पुरुष; विट्—वैश्य; ऊरु:—जाँघ; अङ्घ्रि श्रित—उनके चरणों की छाया में; कृष्ण-वर्ण:—शूद्र; नाना—विविध; अभिधा—नामों से; अभीज्य-गण—देवता; उपपन्न:— निहित; द्रव्य-आत्मक:—उपलब्ध वस्तुओं से; कर्म—कर्म; वितान-योग:—यज्ञ का सम्पन्न होना ।.
अनुवाद
विराट पुरुष का मुख ब्राह्मण है, उनकी भुजाएँ क्षत्रिय हैं, उनकी जाँघें वैश्य हैं तथा शूद्र उनके चरणों के संरक्षण में हैं। सारे पूज्य देवता उनमें सन्निहित हैं और यह प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि भगवान् को प्रसन्न करने के लिए यथासम्भव वस्तुओं से यज्ञसम्पन्न करे।
तात्पर्य
यहाँ पर एक प्रकार से एकेश्वरवाद का सुझाव रखा गया है। यद्यपि वैदिक ग्रन्थों में विभिन्न नामों से अनेक देवताओं को आहुति प्रदान करने का उल्लेख है, किन्तु इस श्लोक में यह सुझाव है कि वे सभी देवता भगवान् के रूप में निहित हैं। वे आदि पूर्ण के अंशमात्र हैं। इसी प्रकार से मानव समाज के विभिन्न वर्ण—यथा ब्राह्मण (प्रबुद्ध जाति), क्षत्रिय (प्रशासक), वैश्य (व्यापारिक जाति) तथा शूद्र (श्रमिक जाति)—परमेश्वर के शरीर में सन्निविष्ट हैं। अतएव इन सबों को उपलब्ध वस्तुओं से भगवान् को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ करने की संस्तुति की गई है। सामान्यतया घी तथा अन्न की आहुति दी जाती है, किन्तु समय की प्रगति के साथ मानव समाज ने ईश्वर की भौतिक प्रकृति द्वारा प्रदत्त वस्तुओं को, तरह-तरह के सामानों में बदल करके, अनेक वस्तुएँ उत्पन्न कर दी हैं। अतएव मानव समाज
को, न केवल घी से आहुति देनी सीखना चाहिए, अपितु भगवान् के यश के प्रसार हेतु, अन्य तैयार सामानों से भी आहुति देनी चाहिए। इससे मानव समाज में पूर्णता आयेगी। ऐसे यज्ञों के लिए बुद्धिमान जाति के लोग अर्थात् ब्राह्मण, पूर्ववर्ती आचार्यों से सलाह करके, निर्देश दे सकते हैं। प्रशासक वर्ग ऐसे यज्ञों के सम्पन्न किये जाने की सारी सुविधाएँ प्रदान कर सकता है, वैश्य वर्ग या व्यापारिक जाति, जो ऐसे सामान उत्पन्न करती है, जिसे यज्ञ में अर्पित कर सकते हैं और शूद्र वर्ग ऐसे यज्ञ को सफलता से सम्पन्न करने के लिए शारीरिक श्रम प्रदान कर सकता है। इस प्रकार मनुष्य जाति के सारे वर्गों के सहयोग से, इस युग में जिस यज्ञ की संस्तुति की जाती है, वह अर्थात् भगवान् के पवित्र नाम का संकीर्तन है, जिसको मानव जाति के कल्याण हेतु विश्व भर में सम्पन्न किया जा सकता है।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥