तस्मात्—अतएव; भारत—हे भरतवंशी; सर्वात्मा—परमात्मा; भगवान्—भगवान्; ईश्वर:—नियामक; हरि:—भगवान्, जो सारे कष्टों को हरनेवाले हैं; श्रोतव्य:—श्रवणीय है; कीर्तितव्य:—महिमागायन के योग्य; च—भी; स्मर्तव्य:—स्मरणीय; च—तथा; इच्छता—इच्छा करनेवाले की; अभयम्—स्वतन्त्रता ।.
अनुवाद
हे भरतवंशी, जो समस्त कष्टों से मुक्त होने का इच्छुक है उसे उन भगवान् का श्रवण, महिमा-गायन तथा स्मरण करना चाहिए जो परमात्मा, नियंता तथा समस्त कष्टों से रक्षा करने वाले हैं।
तात्पर्य
पिछले श्लोक में श्री शुकदेव गोस्वामी ने यह बताया कि किस प्रकार मूर्ख एवं भौतिकतावादी व्यक्ति सोकर, विषयी जीवन में लिप्त रहकर, आर्थिक दशा सुधारने तथा उन कुटुम्बियों के भरण-पोषण में, जो विस्मृति के गर्भ में विलीन हो जाने वाले हैं, अपने मूल्यवान समय का अपव्यय करते हैं। इन भौतिकतावादी कार्यकलापों में संलग्न रहने के कारण जीवात्मा सकाम कर्म के चक्र में अपने को उलझा देता है। यह चक्र चौरासी लाख योनियों में—जलचर, वनस्पतियाँ, सरीसृप, पक्षी, पशु, असभ्य मानव तथा उसके बाद फिर से मनुष्य रूप में—जन्म-मृत्यु का चक्र है और यही सकाम कर्म के चक्र से छूटने का सुअवसर है। अत: यदि कोई इस विषाक्त चक्र से मुक्ति चाहता है, तो उसे कर्मी नहीं बनना चाहिए, अर्थात् अपने ही अच्छे या बुरे कर्म के फल का भोक्ता नहीं बनना चाहिए। उसे अपने लिये अच्छा या बुरा कोई कर्म नहीं करना चाहिए, अपितु हर वस्तु को सर्वोच्च स्वामी परमेश्वर के निमित्त करना चाहिए। कर्म करने की यह विधि भगवद्गीता (९.२७) में भी संस्तुत है, जिसमें भगवान् के निमित्त कर्म करने के लिए आदेश है। अतएव सर्वप्रथम मनुष्य को भगवान् के विषय में श्रवण करना चाहिए। पूरी तरह छानबीन करके श्रवण कर लेने के बाद, उसे भगवान् के कार्यकलापों का महिमा-गायन करना चाहिए। इस तरह वह निरन्तर भगवान् के दिव्य स्वभाव का स्मरण कर सकेगा। भगवान् का श्रवण तथा महिमा-गायन भगवान् के दिव्य स्वभाव से अभिन्न है और इस तरह करने पर मनुष्य सदैव भगवान् के सान्निध्य में रहेगा। इससे सभी प्रकार के भय से मुक्ति मिल जाती है। भगवान् परमात्मा हैं, जो प्रत्येक जीव के हृदय में विद्यमान हैं। इस प्रकार उपर्युक्त श्रवण तथा महिमा-गायन की विधि से भगवान् समग्र सृष्टि को अपनी संगति करने का आमन्त्रण देते हैं। भगवान् के श्रवण तथा महिमा-गायन की यह विधि सब पर लागू होती है, चाहे वह जो भी हो और इससे उसे प्रत्येक कार्य में परम सफलता प्राप्त होगी। मनुष्यों की कई श्रेणियाँ हैं—कर्मी, ज्ञानी, योगी तथा अनन्य भक्त। इन सब पर इच्छित सफलता प्राप्त करने के लिए यही विधि लागू होती है। प्रत्येक व्यक्ति सभी प्रकार के भय से मुक्त होना चाहता है और सर्वाधिक सुख भोगना चाहता है। इसे प्राप्त करने की सम्यक् विधि की संस्तुति यहाँ श्रीमद्भागवत में की गई है, जो श्री शुकदेव गोस्वामी-जैसे महान् अधिकारी द्वारा कथित है। भगवान् के श्रवण तथा महिमा-गायन से मनुष्य के सारे कार्यकलाप आध्यात्मिक बन जाते हैं और इस तरह से भौतिक दुखों की सारी अव-धारणाएँ पूरी तरह नष्ट हो जाती हैं।
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