तास्ववात्सीत् स्वसृष्टासु सहस्रंपरिवत्सरान् ।
तेन नारायणो नाम यदाप: पुरुषोद्भवा: ॥ ११ ॥
शब्दार्थ
तासु—उसमें; अवात्सीत्—रह रहे; स्व—अपनी; सृष्टासु—सृष्टि करने में; सहस्रम्—एक हजार; परिवत्सरान्—वर्ष; तेन—उस कारण से; नारायण:—नारायण; नाम—नाम; यत्—क्योंकि; आप:—जल; पुरुष-उद्भवा:—परम पुरुष से उद्भूत ।.
अनुवाद
परम पुरुष निराकार नहीं हैं, अत: वे स्पष्टत: नर अथवा पुरुष हैं। इसीलिए इन परम नर द्वारा उत्पन्न दिव्य जल नार कहलाता है। चूँकि वे इसी जल में शयन करते हैं इसीलिए नारायण कहलाते हैं।
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