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श्लोक  |
अधिदैवमथाध्यात्ममधिभूतमिति प्रभु: ।
अथैकं पौरुषं वीर्यं त्रिधाभिद्यत तच्छृणु ॥ १४ ॥ |
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शब्दार्थ |
अधिदैवम्—नियंत्रक जीव; अथ—अब; अध्यात्मम्—नियन्त्रित जीव; अधिभूतम्—भौतिक शरीर; इति—इस प्रकार; प्रभु:— भगवान्; अथ—इस प्रकार; एकम्—केवल एक; पौरुषम्—पुरुष की, भगवान् की; वीर्यम्—शक्ति; त्रिधा—तीन भागों में; अभिद्यत—विभक्त हुई; तत्—वह; शृणु—सुनो ।. |
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अनुवाद |
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मुझसे सुनो कि भगवान् अपनी एक शक्ति को किस प्रकार अधिदैव, अध्यात्म तथा अधिभूत नामक तीन भागों में विभक्त करते हैं, जिसका उल्लेख ऊपर हो चुका है। |
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