श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 10: भागवत सभी प्रश्नों का उत्तर है  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  2.10.16 
अनुप्राणन्ति यं प्राणा: प्राणन्तं सर्वजन्तुषु ।
अपानन्तमपानन्ति नरदेवमिवानुगा: ॥ १६ ॥
 
शब्दार्थ
अनुप्राणन्ति—जीवित लक्षणों का अनुसरण करते हैं; यम्—जिसको; प्राणा:—इन्द्रियाँ; प्राणन्तम्—चेष्टावान्; सर्व-जन्तुषु— समस्त जीवों में; अपानन्तम्—चेष्टा रोकने पर; अपानन्ति—अन्य सभी रुक जाते हैं; नर-देवम्—राजा; इव—सदृश; अनुगा:— अनुयायी ।.
 
अनुवाद
 
 जिस प्रकार राजा के अनुयायी अपने स्वामी का अनुसरण करते हैं उसी तरह सम्पूर्ण शक्ति के गतिशील होने पर अन्य समस्त जीव हिलते-डुलते (गति करते) हैं और जब सम्पूर्ण शक्ति निश्चेष्ट हो जाती है, तो अन्य समस्त जीवों की इन्द्रिय-क्रियाशीलता रुक जाती है।
 
तात्पर्य
 व्यष्टि जीवात्माएँ परम पुरुष की पूर्णतया शक्ति पर निर्भर रहती हैं। किसी का स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं रहता, जिस प्रकार विद्युत बल्ब में स्वतन्त्र तेज नहीं होता। बिजली का प्रत्येक यंत्र बिजलीघर पर पूर्ण रूप से निर्भर रहता है, यह बिजलीघर बिजली उत्पादन के लिए जलाशय पर निर्भर रहता है, जलाशय बादलों पर, बादल सूर्य पर और सूर्य सृष्टि पर निर्भर रहती है और यह सृष्टि पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् की चेष्टा अथवा गति पर निर्भर करती है। इस प्रकार भगवान् समस्त कारणों के कारण स्वरूप हैं।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥