भूतमात्रेन्द्रियधियां जन्म सर्ग उदाहृत: ।
ब्रह्मणो गुणवैषम्याद्विसर्ग: पौरुष: स्मृत: ॥ ३ ॥
शब्दार्थ
भूत—पाँच स्थूल तत्त्व (क्षिति, जल आदि); मात्रा—इन्द्रियों द्वारा दृश्य वस्तुएँ; इन्द्रिय—इन्द्रियाँ; धियाम्—मन; जन्म— उत्पत्ति; सर्ग:—प्राकट्य; उदाहृत:—सृष्टि कहलाती है; ब्रह्मण:—आदि पुरुष ब्रह्मा का; गुण-वैषम्यात्—तीनों गुणों की अन्त: क्रिया से; विसर्ग:—दुबारा सृष्टि; पौरुष:—चेष्टाएँ; स्मृत:—कहलाती हैं ।.
अनुवाद
पदार्थ के सोलह प्रकार—अर्थात् पाँच तत्त्व (क्षिति, जल, पावक, गगन तथा वायु), ध्वनि, रूप, स्वाद, गंध, स्पर्श तथा नेत्र, कान, नाक, जीभ, त्वचा एवं मन—की तात्विक सृष्टि सर्ग कहलाती है और प्रकृति के गुणों की बाद की अन्त:क्रिया विसर्ग कहलाती है।
तात्पर्य
श्रीमद्भागवत के दस विभागों के लक्षणों की व्याख्या के लिए लगातार सात श्लोक आये हैं। इनमें से प्रथम प्रस्तुत श्लोक जो सोलह तत्त्वों—यथा पृथ्वी, जल इत्यादि के साथ बुद्धि तथा मन के प्राकट्य को बताता है। परवर्ती सृष्टि आदि पुरुष एवं गोविन्द के अवतार महाविष्णु की उपर्युक्त सोलह शक्तियों की प्रतिक्रियाओं का फल है जैसाकि ब्रह्म-संहिता (५.४७) में ब्रह्माजी ने कहा है— य: कारणार्णवजले भजति स्म योग- निद्रामनन्तजगदण्डसरोमकूप:।
गोविन्द, श्रीकृष्ण का प्रथम पुरुष अवतार महाविष्णु कहलाता है। ये योगनिद्रा में रहते हैं और इनके दिव्य शरीर के प्रत्येक रोमछिद्र में असंख्य ब्रह्माण्ड स्थित रहते हैं।
जैसाकि पिछले श्लोक में कहा गया है, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् की विशिष्ट शक्तियों के प्राकट्य से ही श्रुतेन अर्थात् वैदिक निर्देश से यह सृष्टि सम्भव है। बिना वैदिक निर्देश के यह सृष्टि प्रकृति की उपज प्रतीत होती है। ऐसा निष्कर्ष अल्पज्ञान के कारण ही निकलता है। वैदिक निर्देश से स्पष्ट है कि समस्त शक्तियों (अन्तरंगा, बहिरंगा तथा तटस्था) के मूल तो पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् ही हैं और जैसा पहले बताया गया है, यह तो भ्रमपूर्ण निष्कर्ष है कि यह सृष्टि जड़ प्रकृति द्वारा बनी है। वैदिक निष्कर्ष दिव्य प्रकाश है, जबकि अवैदिक निष्कर्ष भौतिक अन्धकार है। परमेश्वर की अन्तरंगा शक्ति तथा परमेश्वर एक हैं और बहिरंगा शक्ति अन्तरंगा शक्ति के सम्पर्क में ही प्रकाशित होती है। अन्तरंगा शक्ति के अंश-प्रत्यंश जो बहिरंगा शक्ति से सर्म्पक जो क्रिया होती है, वह तटस्था शक्ति अथवा जीवात्मा कहलाती है।
इस प्रकार आदि सृष्टि तो प्रत्यक्ष पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् या परब्रह्म से होती है और गौण सृष्टि, जो मूल अवयवों की प्रतिक्रियाओं का फल है, ब्रह्मा द्वारा रची जाती है। इस तरह समस्त ब्रह्माण्ड के कार्य प्रारम्भ होते हैं।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.