शौनक: उवाच—श्री शौनक मुनि ने कहा; यत्—जैसा; आह—आपने कहा; न:—हमको; भवान्—आप; सूत—हे सूत; क्षत्ता—विदुर; भागवत-उत्तम:—भगवान् का श्रेष्ठ भक्त; चचार—अभ्यास किया; तीर्थानि—तीर्थ स्थानों; भुव:—पृथ्वी पर; त्यक्त्वा—त्याग कर; बन्धून्—सम्बन्धियों को; सु-दुस्त्यजान्—त्याग कर पाना अत्यन्त कठिन ।.
अनुवाद
सृष्टि के विषय में यह सब सुनने के बाद शौनक ऋषि ने सूत गोस्वामी से विदुर के विषय में पूछा, क्योंकि सूत गोस्वामी ने पहले ही उन्हें बता रखा था कि विदुर ने किस प्रकार अपने उन परिजनों को छोडक़र गृहत्याग किया था जिनको छोड़ पाना बहुत दुष्कर होता है।
तात्पर्य
शौनक आदि ऋषि विदुर के विषय में जानने के लिए अत्यन्त उत्सुक थे जिनकी भेंट विश्व के तीर्थस्थलों की यात्रा करते समय मैत्रेय ऋषि से हुई।
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