हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 10: भागवत सभी प्रश्नों का उत्तर है  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  2.10.5 
अवतारानुचरितं हरेश्चास्यानुवर्तिनाम् ।
पुंसामीशकथा: प्रोक्ता नानाख्यानोपबृंहिता: ॥ ५ ॥
 
शब्दार्थ
अवतार—भगवान् का अवतार; अनुचरितम्—कार्यकलाप; हरे:—भगवान् के; —भी; अस्य—उसके; अनुवर्तिनाम्— अनुयायी; पुंसाम्—मनुष्यों का; ईश-कथा:—ईश्वर का विज्ञान, भगवत्तत्व; प्रोक्ता:—कहा गया; नाना—विविध; आख्यान— कथाएँ; उपबृंहिता:—वर्णित ।.
 
अनुवाद
 
 ईश्वर-विज्ञान (ईश-कथा) श्रीभगवान् के विविध अवतारों, उनकी लीलाओं तथा साथ ही उनके भक्तों के कार्यकलापों का वर्णन करता है।
 
तात्पर्य
 इस ब्रह्माण्ड के अस्तित्व काल में इतिहास का अनुक्रम बनता है, जिसमें जीवात्माओं के कार्यों का लेखा-जोखा अंकित होता है। सामान्य रूप से लोगों में विभिन्न व्यक्तियों तथा कालों के इतिहास तथा आख्यानों को जानने की प्रवृत्ति होती है, किन्तु ईश्वर-विज्ञान (ईश कथा) के विषय सम्बन्धी ज्ञान के अभाव के कारण वे भगवान् के अवतारों के इतिहास का अध्ययन करने में सक्षम नहीं होते। यह सदैव स्मरण रखा जाना चाहिए है कि यह सृष्टि बद्धजीवों के मोक्ष के लिए बनी है। भगवान् अपनी अहैतुकी कृपा के कारण इस भौतिक संसार के विविध लोकों में अवतरित होकर बद्धजीवों के मोक्ष के लिए कार्य करते हैं। इससे इतिहास तथा आख्यान पठनीय बन जाता है। श्रीमद्भागवत में भगवान् तथा उनके भक्तों के सम्बन्ध में अनेक दिव्य कथाएँ हैं। फलत: भक्तों तथा भगवान् की कथाओं को आदरपूर्वक सुनना चाहिए।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥