हे राजन्, जब योगी सर्वोच्चलोक ब्रह्मलोक पहुँचने के लिए प्रकाशमान सुषुम्णा द्वारा आकाश-गंगा के ऊपर से गुजरता है, तो वह सर्वप्रथम अग्निदेव के लोक वैश्वानर जाता है, जहाँ वह सारे कल्मषों से परि-शुद्ध हो जाता है। तब वह भगवान् से तादात्म के लिए उससे भी ऊपर शिशुमार चक्र को जाता है।
तात्पर्य
ध्रुवतारा तथा उसके आसपास का मंडल शिशुमार चक्र कहलाता है, जहाँ पर भगवान् (क्षीरोदकशायी विष्णु) का निवास-स्थान है। वहाँ तक पहुँचने के पूर्व योगी को आकाश-गंगा के ऊपर से होकर ब्रह्मलोक पहुँचना होता है। वहाँ जाते समय सर्वप्रथम वह वैश्वानर लोक पहुँचता है, जहाँ का देवता अग्नि पर नियंत्रण रखता है। इस वैश्वानर में योगी भौतिक जगत के संसर्ग में रहने के रहने कारण अर्जित समस्त पापों के मल से पूर्ण रूप से स्वच्छ हो जाता है। यहाँ पर आकाश गंगा को सर्वोच्च लोक ब्रह्मलोक को जानेवाले मार्ग के रूप में दिखाया गया है।
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