इस प्रकार भक्त विभिन्न इन्द्रियों के सूक्ष्म विषयों को पार कर जाता है, यथा सूँघने से सुगन्धि को, चखने से स्वाद को, स्वरूप देखने से दृष्टि को, सम्पर्क द्वारा स्पर्श को, आकाशीय पहचान से कान के कम्पनों को तथा भौतिक कार्य-कलापों से इन्द्रियों को।
तात्पर्य
आकाश से परे सूक्ष्म आवरण हैं, जो ब्रह्माण्डों के प्राथमिक आवरणों के समान हैं। ये स्थूल आवरण, सूक्ष्म कारणों के आंशिक अवयवों के विकास हैं। इस तरह योगी या भक्त, स्थूल तत्त्वों के विलीन होने के साथ-साथ
सूँघने से सुगन्ध जैसे सूक्ष्म कारणों का परित्याग कर देता है। इस तरह शुद्ध आध्यात्मिक स्फुलिंग-स्वरूप जीव सारे भौतिक कल्मष से शुद्ध होकर भगवद्धाम में प्रवेश करने के योग्य बन जाता है।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥