हे सूतगोस्वामी, आपके वचन हमारे मनों को भानेवाले हैं। अतएव कृपा करके आप हमें यह उसी तरह बतायें जिस तरह से दिव्य ज्ञान में अत्यन्त कुशल परम भक्त शुकदेव गोस्वामी ने महाराज परीक्षित के पूछे जाने पर उनसे कहा।
तात्पर्य
जो विद्या शुकदेव गोस्वामी जैसे पूर्ववर्ती आचार्य द्वारा प्रदान की जाती है और फिर सूत गोस्वामी जैसे व्यक्ति द्वारा जिसका अनुकरण किया जाता है, वह सदा शक्तिशाली दिव्य विद्या होती है, इसीलिए वह अन्तर्ग्राही तथा समस्त विनीत जिज्ञासुओं के लिए लाभप्रद होती है।
इस प्रकार श्रीमद्भागवत के द्वितीय स्कंध के अर्न्तगत “शुद्धभक्तिमय सेवा: हृदय-परिवर्तन” नामक तीसरे अध्याय के भक्तिवेदान्त तात्पर्य पूर्ण हुए।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.