शुकदेव गोस्वामी ने कहा : मैं उन पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् को सादर नमस्कार करता हूँ, जो भौतिक जगत की सृष्टि के लिए प्रकृति के तीन गुणों को स्वीकार करते हैं। वे प्रत्येक शरीर के भीतर निवास करनेवाले परम पूर्ण हैं और उनकी गतियाँ अचिन्त्य हैं।
तात्पर्य
यह भौतिक जगत सतो, रजो तथा तमो गुणों की अभिव्यक्ति है और इस जगत की सृष्टि, पालन तथा संहार के लिए ब्रह्माजी, विष्णु तथा शंकर (शिव) इन तीन प्रमुख रूपों को स्वीकार करते हैं। विष्णु के रूप में वे भौतिक रूप से सृजित प्रत्येक जीव में प्रवेश कर जाते हैं। गर्भोदकशायी विष्णु के रूप में वे प्रत्येक ब्रह्माण्ड में प्रवेश करते हैं और क्षीरोदकशायी विष्णु के रूप में वे प्रत्येक जीव के शरीर में प्रवेश करते हैं। समस्त विष्णुतत्त्वों के उद्गम होने के कारण भगवान् कृष्ण को यहाँ पर पर: पुमान् या पुरुषोत्तम के रूप में सम्बोधित किया गया है, जैसाकि भगवद्गीता (१५.१८) में वर्णन आया है। वे परम पूर्ण हैं, अतएव सारे पुरुषावतार उनके अंश हैं। भक्तियोग ही वह एकमात्र विधि है, जिससे कोई उन्हें जानने में सक्षम हो सकता है। चूँकि ज्ञानी तथा योगी भगवान् की अनुभूति नहीं कर पाते, अतएव वे अनुपलक्ष्यवर्त्मने या अचिन्त्य गति या भक्तियोग वाले भगवान् कहलाते हैं।
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