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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 4: सृष्टि का प्रक्रम  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  2.4.25 
एतदेवात्मभू राजन् नारदाय विपृच्छते ।
वेदगर्भोऽभ्यधात् साक्षाद् यदाह हरिरात्मन: ॥ २५ ॥
 
शब्दार्थ
एतत्—इस विषय में; एव—इसी तरह; आत्म-भू:—प्रथम जन्मा (ब्रह्माजी); राजन्—हे राजा; नारदाय—नारदमुनि से; विपृच्छते—पूछा जाकर; वेद-गर्भ:—जन्म से ही वैदिक ज्ञान से संपृक्त है, जो; अभ्यधात्—बतलाया; साक्षात्—प्रत्यक्ष; यत् आह—उसने जो कहा; हरि:—भगवान्; आत्मन:—अपने ही से(ब्रह्मा से) ।.
 
अनुवाद
 
 हे राजन्, नारद द्वारा पूछे जाने पर प्रथम-जन्मा ब्रह्माजी ने इस विषय में ठीक वही बात बतलाई जो भगवान् ने अपने पुत्र (ब्रह्मा) से प्रत्यक्ष कही थी जो जन्म से ही वैदिक ज्ञान से संपृक्त थे।
 
तात्पर्य
 ज्योंही विष्णु के नाभि-कमल से ब्रह्मा का जन्म हुआ, वे वैदिक ज्ञान से संपृक्त थे, अतएव वे वेदगर्भ या जन्म से वेदान्ती कहलाते हैं। वैदिक ज्ञान के या कि पूर्ण अच्युत ज्ञान के बिना कोई भी सृष्टि नहीं कर सकता। सारा वैज्ञानिक ज्ञान तथा पूर्ण ज्ञान वैदिक है। वेदों से सभी तरह की जानकारी प्राप्त की जा सकती हैं। इसीलिए ब्रह्माजी परिपूर्ण ज्ञान से संपृक्त थे जिससे वे सृष्टि करने में समर्थ हो सके। अतएव ब्रह्माजी सृष्टि के पूर्ण विवरण से अवगत थे, क्योंकि भगवान् हरि ने उन्हें इससे अवगत कराया था। जब नारद ने ब्रह्मा से जिज्ञासा की तो उन्होंने नारद को ठीक उसी तरह सुनाया जैसा उन्होंने साक्षात् भगवान् से सुना था। नारद ने ठीक यही बात व्यास को बताई और व्यास ने भी शुकदेव गोस्वामी को उसी रूप में सुनाया जिस तरह उन्होंने नारद से सुन रखा था। शुकदेव गोस्वामी वे ही बातें अब सुनाने जा रहे थे जिन्हें उन्होंने व्यास से सुना था। वैदिक ज्ञान को समझने की यही विधि है। केवल उपर्युक्त परम्परा द्वारा ही वेदों की भाषा समझी जा सकती है, अन्यथा नहीं।

सिद्धान्तों से कोई लाभ होनेवाला नहीं। ज्ञान को वास्तविक होना चाहिए। बहुत सी ऐसी बातें हैं, जो जटिल होती हैं और कोई उन्हें तब तक नहीं समझ पाता जब तक वे किसी ज्ञाता द्वारा न बताई जायें। वैदिक ज्ञान को जानना भी कठिन है। उसे उपर्युक्त प्रणाली से सीखना चाहिए, अन्यथा वह समझ में नहीं आता।

अतएव शुकदेव गोस्वामी ने भगवान् से कृपा करने के लिए प्रार्थना की, जिससे वे उनके द्वारा ब्रह्मा को प्रत्यक्ष कहे गये सन्देश को या ब्रह्मा ने जो कुछ नारद से कहा, उसे दुहरा सकें। अतएव शुकदेव गोस्वामी द्वारा वर्णित सृष्टि-विषयक कथन सैद्धान्तिक नहीं हैं, जैसाकि कुछ संसारी कहते हैं, अपितु पूर्ण रूप से सत्य हैं। जो इन सन्देशों (कथाओं) को सुनता है और आत्मसात् करने का प्रयास करता है, वह भौतिक सृष्टि-विषयक पूरी-पूरी जानकारी प्राप्त कर लेता है।

 
इस प्रकार श्रीमद्भागवत के द्वितीय स्कंध के अन्तर्गत “सृष्टि का प्रक्रम” नामक चतुर्थ अध्याय के भक्तिवेदान्त तात्पर्य पूर्ण हुए।
 
 
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