श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 4: सृष्टि का प्रक्रम  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  2.4.5 
राजोवाच
समीचीनं वचो ब्रह्मन् सर्वज्ञस्य तवानघ ।
तमो विशीर्यते मह्यं हरे: कथयत: कथाम् ॥ ५ ॥
 
शब्दार्थ
राजा उवाच—राजा ने कहा; समीचीनम्—सर्वथा उचित; वच:—वाणी; ब्रह्मन्—हे विद्वान ब्राह्मण; सर्व-ज्ञस्य—सब कुछ जाननेवाले का; तव—तुम्हारा; अनघ—निष्पाप; तम:—अज्ञान का अंधकार; विशीर्यते—क्रमश: लुप्त हो रहा है; मह्यम्—मेरे लिए; हरे:—भगवान् की; कथयत:—जिस तरह आप कह रहे हैं; कथाम्—कथा ।.
 
अनुवाद
 
 महाराज परीक्षित ने कहा : हे विद्वान ब्राह्मण, आप भौतिक दूषण से रहित होने के कारण सब कुछ जानते हैं, अतएव आपने मुझसे जो भी कहा है, वह मुझे पूर्ण रूप से उचित प्रतीत होता है। आपकी बातें क्रमश: मेरे अज्ञानरूपी अंधकार को दूर कर रही हैं, क्योंकि आप भगवान् की कथाएँ कह रहे हैं।
 
तात्पर्य
 यहाँ पर महाराज परीक्षित के व्यावहारिक अनुभव का उद्घाटन हुआ है, जिससे पता चलता है कि भगवान् की दिव्य कथाएँ जब भौतिकता से रहित व्यक्ति से एक निष्ठावान भक्त को प्राप्त होती हैं, तो वे इंजेक्शन के समान प्रभाव दिखलाती हैं। दूसरे शब्दों में, जब पेशेवर लोगों से श्रीमद्भागवत की कथाएँ कर्मकाण्डी श्रोता द्वारा सुनी जाती हैं, तो वे ऊपर कहे गये चामत्कारिक ढंग से कार्य नहीं करतीं। भगवान् की कथाओं का भक्तिमय श्रवण सामान्य वार्ताओं के सुनने जैसा नहीं है, अतएव निष्ठावान श्रोता द्वारा इसका प्रभाव तभी अनुभव किया जायेगा जब अज्ञान का क्रमश: तिरोधान हो।

यस्य देवे परा भक्तिर्यथा देवे तथा गुरौ।

तस्यैते कथिता ह्यर्था: प्रकाशन्ते महात्मन: ॥

(श्वेताश्वतर उपनिषद् ६.२३) जब भूखे व्यक्ति को भोजन दिया जाता है, तो उसकी भूख शान्त होती है और साथ ही भोजन करने का आनन्द प्राप्त होता है। इस तरह उसे यह पूछने की आवश्यकता नहीं रह जाती कि वास्तव में उसे भोजन मिला है या नहीं। श्रीमद्भागवत के सुनने की अग्नि परीक्षा यह है कि मनुष्य को निश्चयात्मक प्रकाश प्राप्त हुआ या नहीं।

 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥